यानी मेरी राय बिलकुल सही थी। दिल्ली चुनावों में बीजेपी के पास कोई मुद्दा नहीं है और वह बड़ी बेचैनी के साथ चाहती है कि चुनाव सांप्रदायिकता के एजेंडे पर लड़ा जाए। मैंने लिखा था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपने पाँच सालों के कामकाज पर लड़ना चाहती है और बीजेपी की पूरी कोशिश है कि वह विकास के कामों पर चुनाव न होने दे। इसलिये वह पूरी शिद्दत से शाहीन बाग़ को आगे कर उसे बड़ा मुद्दा बनाना चाहती है। वह तीन स्तरों पर काम कर रही है।

क़ायदे से दिल्ली चुनाव में बीजेपी को अपना एजेंडा बदलना चाहिए। और केजरीवाल को शाहीन बाग़ से जोड़ने की जगह विकास के मुद्दे पर घेरना चाहिए। पर बीजेपी ऐसा कर नहीं सकती क्योंकि उसने दिल्ली की एमसीडी में कोई काम नहीं किया है। न ही उसके सातों सांसदों का काम ऐसा है कि इसे जनता के बीच रख वोट माँगा जाए। मोदी सरकार भी आर्थिक मसलों पर बुरी तरह पिट रही है।
एक, उसकी पूरी कोशिश है कि शाहीन बाग़ को वह केजरीवाल से जोड़ दे। इसलिए अमित शाह और दूसरे नेता केजरीवाल को चुनौती दे रहे हैं कि वह शाहीन बाग़ जाएँ। केजरीवाल के वहाँ जाते ही बीजेपी बहुसंख्यक जनता को यह संदेश देगी कि उसे सिर्फ़ मुसलमानों की ही चिंता है। उसे हिंदुओं की चिंता नहीं है।
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।