मेडिकल छात्रों की आत्महत्या हमारे देश में मामूली बात है। तमाम समस्याओं के बीच इस पर ध्यान देने की फुरसत किसी को नहीं। यही कारण है कि देहरादून में शिशुरोग के पीजी मेडिकल छात्र डॉ. दिवेश गर्ग की आत्महत्या भी महज एक संख्या बनकर रह गई।
हजारों मेडिकल छात्रों को कोर्स या दुनिया छोड़ने की नौबत क्यों आ रही?
- विचार
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- 26 May, 2024

जिस मेडिकल की पढ़ाई करोड़ों छात्रों का सपना होता है, उसमें प्रवेश के बाद बीच में ही बड़ी संख्या में पढ़ाई छोड़ना क्यों पड़ रहा है? आख़िर क्यों कई छात्र आत्महत्या कर ले रहे हैं? दिवेश गर्ग आत्महत्या को क्यों मजबूर हुए?
पलवल (हरियाणा) के एक मध्यवर्गीय परिवार ने जिंदगी भर की कमाई दांव पर लगाकर, 38 लाख रुपये देकर बेटे का एडमिशन कराया था। पूरे कोर्स पर लगभग 1.20 करोड़ का खर्च आता। लेकिन 17 मई की रात उसने कॉलेज के होस्टल में आत्महत्या कर ली। चार बहनों का इकलौता भाई था। शोकाकुल पिता कहते हैं- “क्या कहें भाई, हमारी तो जिंदगी ही लुट गई।"
नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने आरटीआई के तहत डॉ. विवेक पांडेय को चौंकाने वाली सूचना दी थी। वर्ष 2018 से 2022 के बीच देश में कुल 122 मेडिकल छात्रों ने आत्महत्या कर ली। इनमें एमबीबीएस के 64 तथा पीजी के 58 छात्र शामिल थे। वर्ष 2023 और 2024 में भी यह सिलसिला जारी है। अनुमान है कि डॉ. दिवेश गर्ग की संख्या एक सौ पचासवीं होगी। यह संख्या कुछ कम या अधिक हो सकती है।