इस भूमंडल पर जब से बर्बर पशुओं ने विकसित होकर एक मानव के रूप में सोचना प्रारंभ किया, तब से ‘ज्ञान के मसीहाओं’ व ‘अज्ञानता के तानाशाहों’ के बीच जंग जारी है। प्राचीनकाल में ही इसी जंग के दौरान भारतीय सभ्यता में ‘ज्ञान के मसीहाओं’ ने दीवाली नामक इस त्योहार की परिकल्पना कर ली थी। जिसका उद्देश्य एक आदर्श राज्य-व्यवस्था के लिए यह देखने का अवसर प्रदान करना था कि अभी भी उसके राज में कितने घरों में ग़रीबी के कारण दीये नहीं जलाए गए हैं। इसके जवाब में ‘अज्ञानता के तानाशाहों’ ने मानवता के इस त्योहार को धर्म से जोड़कर इसको इसके पावन उद्देश्य से भटकाने में सफलता पा ली। दुष्यंत ने ठीक ही लिखा था।
दीवाली: दीपों से मशाल जलाओ, जंग जारी है...
- विचार
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- 22 Oct, 2022

‘ज्ञान के मसीहाओं’ ने अपने मूल्यों को जीवित रखने के लिए सांस्कृतिक त्योहारों का निर्माण किया तो ‘अज्ञानता के तानाशाहों’ ने उन्हीं त्योहारों को धार्मिक स्वरूप प्रदान कर घृणा का औजार बना दिया।
“कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिए,कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए”
लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय में पाश्चात्य इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष व एमेरिटस फेलो हैं।