बुद्धिजीवी और असहिष्णु! यह बात विरोधाभासी लगती है, पर अपने देश में ऐसा ही है। विरोधी विचार के प्रति बुद्धिजीवियों के एक वर्ग की असहिष्णुता असीमित होती है। माथा देखकर तिलक लगाने की कहावत तो सुनी थी। आजकल पार्टी का चुनाव चिन्ह देखकर आलोचना या प्रशंसा का दौर चल रहा है। मॉब लिंचिंग किसे कहा जाएगा और उसे कितनी गंभीरता से लिया जाएगा, इसका फ़ैसला इससे होगा कि करने वाला कौन है? किसी सरकार की कामयाबी या नाकामी का फ़ैसला इस बात से तय होगा कि सरकार किसकी है?