यह सिर्फ भारत की सबसे पुरानी और सबसे अधिक समय तक सत्ता में रह चुकी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी ही कर सकती है। पहले उसने अपने 72 वर्षीय निर्वाचित मुख्यमंत्री से सार्वजनिक तौर पर माफी मंगवाई। फिर उसे 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया कि उनको मुख्यमंत्री बने रहना है या नहीं, इसका फैसला कांग्रेस आलाकमान यानी सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी करेंगे। केंद्र और राज्य में अनेक बार बड़े-बड़े पदों पर रह चुके अशोक गहलोत को शायद ही इस बात का अनुमान रहा होगा कि बीते 25 सितम्बर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की आनन-फानन में बुलाई बैठक के न हो पाने की उन जैसे ‘वफादार’ को 29 सितम्बर की शाम इतनी बड़ी सजा मिलेगी। यही नहीं, कांग्रेस के नये अध्यक्ष पद के लिए अब वह उम्मीदवार भी नहीं बनेंगे। कांग्रेस ने यह सब अपने उस मुख्यमंत्री के साथ किया है, जो बीते चार साल से सत्ता में है और जिसकी राजस्थान के लोगों में अब भी अच्छी साख है।

कांग्रेस में मौजूदा संकट की असली वजह क्या है? आख़िर इस संकट के लिए कौन ज़िम्मेदार हैं? पहले राजस्थान में हंगामा हुआ और अब अध्यक्ष पद के चुनाव में अशोक गहलोत की स्थिति को लेकर सवाल क्यों खड़े हो रहे हैं?
अचरज की बात है कि कांग्रेस आलाकमान इस तरह के फ़ैसले ऐसे समय कर रहा है, जब स्वयं राहुल गांधी एक सकारात्मक कार्यक्रम लेकर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निकले हैं और राजस्थान में अगले वर्ष चुनाव होना है। राज्य के पड़ोसी सूबे गुजरात में तो इसी वर्ष के अंत तक चुनाव होने वाला है, जहां कांग्रेस को सत्ताधारी भाजपा से मुकाबला करना है। इस चुनाव में भी अशोक गहलोत जैसे बड़े पार्टी नेता की भूमिका होगी। गुजरात के पिछले चुनाव में गहलोत महत्वपूर्ण भूमिका में थे। एक और संदर्भ है-आज के राजनीतिक परिवेश का।