पंजाब की कांग्रेस सरकार में पिछले दो महीने से चल रही उठापटक का पटाक्षेप हो गया है। कांग्रेस पार्टी ने दलित समाज से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया है। कांग्रेस के इस क़दम से मीडिया और राजनीति के स्वर बदलने लगे हैं। काफ़ी अरसे के बाद कांग्रेस द्वारा लगाए गए इस 'मास्टर स्ट्रोक' को चुनावी राजनीति का बेहतरीन क़दम माना जा रहा है। चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है। ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस के इस राजनीतिक फ़ैसले के मायने क्या हैं? कांग्रेस को इससे क्या हासिल होगा?

चौतरफ़ा दलितों पर हो रहे हमले और उनका उत्पीड़न राजनीतिक मुद्दा नहीं बन सका। हाथरस और दिल्ली में दलित लड़की के साथ बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध के बावजूद दलित समाज राजनीतिक पटल से लगभग ग़ायब हो गया। ऐसे में पंजाब की सत्ता दलित के हाथ में आने से निश्चित तौर पर दलित मुद्दों और राजनीति का पुनर्वास होगा।
पूरे देश में आनुपातिक रूप से सबसे ज़्यादा दलित आबादी पंजाब में है। लगभग एक तिहाई (32- 33 फ़ीसदी) आबादी वाले पंजाब में पहली बार किसी दलित को मुख्यमंत्री बनाया गया है। कांग्रेस जोर-शोर से अपने इस क़दम का प्रचार कर रही है। दूसरी तरफ़ प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से 17 प्रांतों में सत्ता पर काबिज बीजेपी का कोई मुख्यमंत्री दलित नहीं है। इतना ही नहीं, पिछले तीन दशक से कई प्रांतों में सत्ता पर काबिज बीजेपी ने अब तक किसी दलित को मुख्यमंत्री नहीं बनाया है। जबकि कुल 8 दलित मुख्यमंत्रियों में से 5 कांग्रेस ने बनाए हैं। सबसे पहले आंध्र प्रदेश में 1960 दामोदरम संजीवय्या को मुख्यमंत्री बनाया। इसके बाद बिहार में भोला पासवान शास्त्री 1968 से 1971 के बीच तीन बार मुख्यमंत्री बने। 1980 में जगन्नाथ पहाड़िया राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री हुए। 2003 में सुशील कुमार शिंदे को कांग्रेस ने महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया। 2021 में पंजाब को यह गौरव प्राप्त हुआ।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।