वर्तमान हालात में देश का मुसलिम तबक़ा नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए), नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजंस (एनआरसी), नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के बहाने देश में अपने अस्तित्व और अपनी पहचान को लेकर सरकार की नीयत के प्रति संदेह कर रहा है। अलग-अलग राज्यों में तमाम तरह के लोग नागरिकता क़ानून के विरोध में सड़कों पर उतरे हुए हैं। ऐसे में आरएसएस के मुखिया मोहन भागवत यह क्यों कह रहे हैं कि देश में जो भी रह रहा है, वे सब हिंदू हैं? यह बयान मौजूदा माहौल में कम से कम किसी उदारवाद की निशानी तो नहीं है। फिर ऐसा बयान उन्होंने क्यों दिया? क्या सब किसी लंबी विचार परियोजना का हिस्सा है?