भारतीय राजनीति का एक दौर वह भी था जब राजनेता, जनता के समक्ष एक विनम्र, उदार, सज्जन व मृदुभाषी नेता के रूप में अपनी छवि बनाकर रखना चाहते थे। उनकी कोशिश होती थी कि उनकी वाणी, आचरण तथा कार्यशैली से भी ऐसा ही संदेश जनता तक पहुंचे। यही वजह थी कि ऐसे राजनेता समाज के हर वर्ग में समान रूप से लोकप्रिय हुआ करते थे। परन्तु समय बीतने के साथ-साथ न केवल राजनीति का स्वरूप बदलता गया बल्कि राजनेताओं की कार्यशैली, उनके स्वभाव, उनकी नीयत व नीतियों में भी काफ़ी बदलाव देखा जाने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि आज के राजनेता स्वयं को विनम्र, उदार, सज्जन व मृदुभाषी नेता रूप में पेश करने के बजाये उग्र, आक्रामक, कटु वचन यहाँ तक कि विभाजनकारी बोल बोलने वाला एवं दबंग नेता के रूप में पेश करने लगे हैं।
क्यों बीजेपी नेता बन रहे हैं बुलडोज़र बाबा?
- विचार
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- 12 Oct, 2022

भारत में बुलडोजर को अब किस चीज का प्रतीक बना दिया गया है? क्या यह सरकारी दबदबे और ताक़त का प्रतीक नहीं है? आख़िर बीजेपी नेताओं को बुलडोजर से क्यों जोड़कर देखा जा रहा है?
आज अनेक जनप्रतिनिधि सार्वजनिक सभाओं में खुलेआम ग़ैर संवैधानिक बातें करते, अपने समर्थकों को धर्म व जाति विशेष के लोगों के विरुद्ध हिंसा के लिये उकसाते, ज़हर उगलते तथा विद्वेष फैलाते देखे जा सकते हैं। देश की अदालतें भी इनकी 'हेट स्पीच' से परेशान हैं और कई बार इनपर तल्ख़ टिप्पणियाँ भी कर चुकी हैं। परन्तु सत्ता के संरक्षण, मीडिया द्वारा ऐसे नेताओं के महिमामण्डन तथा उन्हें शोहरत के शिखर तक पहुँचाने से ऐसे नेताओं को नियंत्रित करने के बजाये उल्टे इन्हें शह मिल रही है और ऐसे नेताओं की तादाद दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।