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राजस्थान के संकट का फ़ैसला तुरंत हो

किस दल के पास बहुमत है, यह तय करने का सबसे अधिक प्रामाणिक तरीका तो सदन में होने वाला मतदान ही है। अदालतों की राय कुछ भी हो, ऐसे मुद्दों पर अंतिम फैसला सदन का ही होता है। राजस्थान के मामले को अदालतों में घसीटने का काम दोनों पक्षों ने किया है। ऐसा करके दोनों पक्षों ने विधानपालिका को न्यायपालिका का चरण-वंदन करने के लिए बाध्य कर दिया है। 
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

जयपुर में कमाल की नौटंकी चल रही है। क्या आज तक किन्हीं नाराज़ विधायकों ने कभी राजभवन के अंदर धरना दिया है? मेरी स्मृति में ऐसा पहली बार हुआ है। राष्ट्रपति भवन और राजभवनों में विधायकों और सांसदों ने परेडें ज़रूर की हैं लेकिन इस समय जैसा दृश्य जयपुर के राजभवन में दिखाई पड़ रहा है, भारत के किसी भी प्रांत में पहले नहीं दिखाई पड़ा। 

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र के विरोध में यह धरना चला, क्योंकि उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को साफ़-साफ़ कह दिया है कि कोरोना के इस संकटकाल में विधानसभा का सत्र बुलाना संभव नहीं है। 

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मोटे तौर पर राज्यपाल का दृष्टिकोण व्यावहारिक मालूम पड़ता है लेकिन कलराज जी से कोई पूछे कि आप 200 विधायकों के मिलने पर कोरोना का खतरा महसूस कर रहे हैं लेकिन क्या बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिल्कुल नहीं डर रहे हैं। 

मोदी 5 अगस्त को राम मंदिर के भूमि पूजन कार्यक्रम में अयोध्या जाएंगे और वहां 200 से भी अधिक महामहिम इकट्ठे होंगे। उनके साथ सैकड़ों सुरक्षाकर्मी भी होंगे। अभी जो कांग्रेसी विधायक राजभवन के अंदर धरना दे रहे हैं, उन्होंने मुखपट्टियां लगा रखी हैं और वे शारीरिक दूरी भी बनाए हुए हैं। 

किस दल के पास बहुमत है, यह तय करने का सबसे अधिक प्रामाणिक तरीका तो सदन में होने वाला मतदान ही है। अदालतों की राय कुछ भी हो, ऐसे मुद्दों पर अंतिम फैसला सदन का ही होता है।

राजस्थान के मामले को अदालतों में घसीटने का काम दोनों पक्षों ने किया है। ऐसा करके दोनों पक्षों ने विधानपालिका को न्यायपालिका का चरण-वंदन करने के लिए बाध्य कर दिया है। ऐसा करके उन्होंने अपनी और संसदीय लोकतंत्र की गरिमा तो गिराई ही है, राजस्थान की राजनीति को भी अधर में लटका दिया है। 

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पिछले एक हफ्ते से क्या राजस्थान की सरकार कोई काम कर पा रही है? कारोना के विरुद्ध संग्राम में उसने जो नाम कमाया था, वह भी पृष्ठभूमि में खिसक गया है। कांग्रेस और बीजेपी, दोनों की कथनी और करनी, उनकी प्रतिष्ठा को रसातल में पहुंचा रही है। 

यदि राजस्थान विधानसभा का सत्र विधान भवन में नहीं बुलाया जा सकता हो तो जयपुर के महलनुमा होटलों में या किसी लंबे-चौड़े मैदान में भी बुलाया जा सकता है या दोनों पक्षों को बुलाकर राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष अपने सामने परेड करवाकर भी फ़ैसला करवा सकते हैं। इस मामले को तय करने में जितनी देर लगेगी, भ्रष्टाचार उतना ही बढ़ेगा, नेताओं की इज्जत उतनी ही गिरेगी और लोकतंत्र उतना ही कमजोर होगा।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक
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