मुल्क की फ़िज़ा कुछ इस तरह से बदल दी गई है कि आज़ादी की बात करना बग़ावत है और आज़ादी की माँग करना देशद्रोह। ये आज़ादी भले ही भूख और भ्रष्टाचार से माँगी जा रही हो, अशिक्षा और शोषण से माँगी जा रही हो, हिंदुत्व और संप्रदायवाद से माँगी जा रही हो, मगर शासक वर्ग और उसके साथ खड़ा मीडिया उसका एक ही अर्थ निकालता है और वह है देशद्रोह। वह उन्हें देशद्रोहियों के रूप में प्रचारित करता है, उन्हें अपमानित, लाँछित करता है। सरकार द्वारा ऐसे लोगों पर राजद्रोह के मुकदमे थोप दिए जाते हैं, उन्हें जेल में ठूँस दिया जाता है।