19वीं शताब्दी में जब पूरे यूरोप में लोकतंत्र तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा था, तब कुछ लोग ऐसे भी थे जो जनता को बराबरी का मताधिकार देने के पक्ष में नहीं थे। वास्तव में वे आबादी को एक भीड़ के रूप में देखते थे तथा वे भीड़ के विवेक, आचरण और सही निर्णय लेने की क्षमता को लेकर असमंजस में थे। ब्रिटेन के कुछ विचारकों का मानना था कि लोकतंत्र को धीरे-धीरे विभिन्न चरणों में लागू किया जाना चाहिए तथा मतदान का अधिकार धनी, शिक्षित तथा संभ्रात वर्ग के लोगों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। मशहूर विचारक जे.एस. मिल ने तर्क दिया कि सभी को मताधिकार देने के बजाय इसे सिर्फ़ शिक्षित लोगों तक ही सीमित रखा जाए।
गणतंत्र को बचाने के लिये अर्णब जैसे टीवी एंकरों से बचें!
- विचार
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- 26 Jan, 2021

हम सभी को इस उम्मीद से मताधिकार दिया गया है कि हम इस शक्ति का इस्तेमाल ज़िम्मेदारी के साथ देश के हित में करेंगे। लेकिन, ऐसा तभी होगा जब हम उन ख़बरनवीसों से ख़बरदार रहें जो प्राइम टाइम का इस्तेमाल एक मनोरंजक रंगमंच की तरह करते हैं और ग़ैरज़रूरी और झूठी ख़बरों को सनसनीखेज बनाकर सत्ता पक्ष को जनहित से जुड़े बुनियादी सवालों से बचाने और देश की जनता को गुमराह करने के लिए करते हैं।
सौभाग्य से, जे.एस. मिल जैसे महानुभावों के विचारों को हमारे संविधान निर्माताओं का समर्थन नहीं मिला। भारत के विद्वान संविधान निर्माताओं के नेतृत्व में भारत की जनता ने साहसिक और अग्रगामी सोच के तहत एक ऐसे संविधान का निर्माण किया जो देश के समस्त वयस्क नागरिकों को बराबरी के मताधिकार की गारंटी देता था। हमारे संविधान निर्माताओं ने वोट देने के अधिकार को जागरूक लोकशक्ति के रूप में देखा तथा जनता के ‘विवेक’ और ‘निर्णय लेने की क्षमता’ के प्रति विश्वास जताया। भारत का संविधान देश की समस्त जनता को न सिर्फ़ अपनी पसंद की सरकार चुनने की आज़ादी देता है, बल्कि उसे सरकारों को नियंत्रित करने की अमोघ शक्ति भी देता है।
भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी डॉ. अजय कुमार कांग्रेस से जुड़े हुए हैं। वह समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।