19वीं शताब्दी में जब पूरे यूरोप में लोकतंत्र तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा था, तब कुछ लोग ऐसे भी थे जो जनता को बराबरी का मताधिकार देने के पक्ष में नहीं थे। वास्तव में वे आबादी को एक भीड़ के रूप में देखते थे तथा वे भीड़ के विवेक, आचरण और सही निर्णय लेने की क्षमता को लेकर असमंजस में थे। ब्रिटेन के कुछ विचारकों का मानना था कि लोकतंत्र को धीरे-धीरे विभिन्न चरणों में लागू किया जाना चाहिए तथा मतदान का अधिकार धनी, शिक्षित तथा संभ्रात वर्ग के लोगों तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। मशहूर विचारक जे.एस. मिल ने तर्क दिया कि सभी को मताधिकार देने के बजाय इसे सिर्फ़ शिक्षित लोगों तक ही सीमित रखा जाए।