दिल्ली दंगों पर आख़िरकार संसद में बहस हो ही गयी। विपक्ष माँग कर रहा था। पर बहस का हासिल क्या है? अगर विपक्ष सोच रहा था कि बहस से दंगा पीड़ितों के घाव पर मरहम लगेगा तो वह निराश होगा! जो यह सोच रहे थे कि दंगों की जवाबदेही संसद तय करेगी, उन्हे हताशा के सिवाय कुछ और नही मिलने वाला।