दिल्ली दंगों पर आख़िरकार संसद में बहस हो ही गयी। विपक्ष माँग कर रहा था। पर बहस का हासिल क्या है? अगर विपक्ष सोच रहा था कि बहस से दंगा पीड़ितों के घाव पर मरहम लगेगा तो वह निराश होगा! जो यह सोच रहे थे कि दंगों की जवाबदेही संसद तय करेगी, उन्हे हताशा के सिवाय कुछ और नही मिलने वाला।

अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं। मोदी के बाद सबसे ताक़तवर नेता। उन्हें इस सवाल का जवाब देना चाहिये कि अगर दंगे इतने बड़े पैमाने पर आयोजित किये गये जिनमें अब तक 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, सैकड़ों लोग घायल हैं, तो उनका ख़ुफ़िया विभाग क्या कर रहा था?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।