चंडीगढ़ नगर-निगम के चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली सीटों ने देश के बड़े राजनीतिक दलों को एक धक्का-सा दिया है। नगर निगम के चुनावों में कांग्रेसी आशा कर रहे थे कि उन्हें सबसे ज्यादा सीटें मिलेंगी और महापौर उनका ही बनेगा।
ऐसा वे इसलिए सोच रहे थे कि किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी के वोट तो कटेंगे ही, चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बन जाने के कारण अनुसूचित सीटें तो पकी-पकाई मिल ही जाएंगी।
कांग्रेस की सीटें 2016 में चार थीं। वे आठ ज़रुर हो गईं लेकिन उनका वोट 38 प्रतिशत से घटकर 29 प्रतिशत रह गया। इसी प्रकार बीजेपी सोच रही थी कि किसान आंदोलन वापस ले लेने का फायदा उसे मिलेगा और हिंदू वोट उसे थोक में मिलेगा ही। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम को भी वह खूब भुनाएगी।
मोदी ने भी सिख वोटरों को प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। स्थानीय चुनाव में पार्टी का रंग जमाने में केंद्रीय नेताओं ने भी पूरा जोर लगा दिया लेकिन हुआ क्या? 2016 में बीजेपी की 20 सीटें थीं। उसकी बस 12 रह गईं। वर्तमान महापौर और कई पूर्व महापौर हार गए। कुछ उम्मीदवार एकदम मामूली वोटों से जीते।
प्रदेशाध्यक्ष का वार्ड हाथ से खिसक गया और सबसे बड़ा धक्का यह लगा कि 2016 में मिले 46 प्रतिशत वोट घटकर 29 प्रतिशत रह गए। बीजेपी के दिग्गजों की मात ने यह संकेत भी दे दिया कि पता नहीं बीजेपी और अमरिंदर सिंह की मिलीभगत भी कामयाब होगी या नहीं?
जहां तक आम आदमी पार्टी का सवाल है, पंजाब विधानसभा में उसके 14 विधायक हैं लेकिन चंडीगढ़ नगर निगम में तो उसके पार्षदों की संख्या शून्य थी लेकिन 0 से 14 पर पहुंचना तो आसमानी छलांग के बराबर है।
यह ठीक है कि इस पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल दिल्ली में लोक-सेवा के जैसा अभियान चला रहे हैं और उनका जैसा धुआंधार प्रचार टीवी चैनलों और अखबारों में हो रहा है, उसका असर इस चंडीगढ़-चुनाव पर तो पड़ा ही है, खुद केजरीवाल और उनके विधायकों ने भी चंडीगढ़ को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था।
उन्हें स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। उसमें 5 सीटें कम रह गईं लेकिन उन्होंने सभी पार्टियों के होश फाख्ता कर दिए हैं। उन्हें कुल 27 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो कि कांग्रेस और बीजेपी से थोड़े से ही कम हैं।
दूसरे शब्दों में तीनों प्रमुख पार्टियां वोटों के हिसाब से लगभग बराबरी के स्तर पर हैं। अकाली दल तो एकदम पिछड़ गई है। हो सकता है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर अपना महापौर बैठा लें लेकिन आम आदमी पार्टी की असाधारण बढ़त के बावजूद यह कहना आसान नहीं है कि पंजाब में अगली सरकार किस पार्टी की बनेगी।
लेकिन चंडीगढ़ ने आम आदमी पार्टी का जलवा जमा दिया है, इसमें कोई शक नहीं है।
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