सियासत के घावों को ठीक करने की एकमात्र मरहम हमारी न्याय व्यवस्था है लेकिन अब ये मरहम भी सहज-सुलभ दिखाई नहीं दे रहा। वक्त ने हमारी न्याय व्यवस्था को भी दूसरे माध्यमों की तरह निराश करने वाला बना दिया है। हाल के एक नहीं, अनेक मामलों में अदालतों के व्यवहार से उम्मीद की जगह निराशा होती है लेकिन चौतरफ़ा डूबती व्यवस्थाओं में अब भी न्याय व्यवस्था तिनके का सहारा बनी हुई है। गनीमत ये है कि हमारी न्याय व्यवस्था अभी सियासत की तरह छुईमुई नहीं हुई है। अपनी स्वस्थ्य आलोचना को सुन और समझ लेती है।

राज्यसभा सदस्य और एक पुराने पत्रकार के साथ अभियोजन आतंकवादियों जैसा व्यवहार क्यों कर रहा है? क्यों इनके जमानत पर आने से अभियोजन पक्ष को तकलीफ है?
देश के तीन अलग-अलग मामलों पर नज़र डालकर देखिये, आपकी समझ में आ जाएगा कि आख़िर हमारे मुल्क में हो क्या रहा है? पहला मामला आम आदमी पार्टी से जुड़ा है। आम आदमी पार्टी के दो मंत्री पहले से जेल में थे और अब एक और सांसद संजय सिंह को जेलाटन करा दिया गया है। प्रवर्तन निदेशालय को अदालत से संजय की अभिरक्षा पर अभिरक्षा मिल रही है। इससे लगता है कि हमारी अदालतें किसी आरोपी का मुंह और रसूख देखकर जमानतें नहीं देतीं लेकिन कभी-कभी ये भी लगता है कि आरोपी का रसूखदार और सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ खड़ा होना ही उसके जमानत के अधिकार को क्षीण कर देता है।