सियासत के घावों को ठीक करने की एकमात्र मरहम हमारी न्याय व्यवस्था है लेकिन अब ये मरहम भी सहज-सुलभ दिखाई नहीं दे रहा। वक्त ने हमारी न्याय व्यवस्था को भी दूसरे माध्यमों की तरह निराश करने वाला बना दिया है। हाल के एक नहीं, अनेक मामलों में अदालतों के व्यवहार से उम्मीद की जगह निराशा होती है लेकिन चौतरफ़ा डूबती व्यवस्थाओं में अब भी न्याय व्यवस्था तिनके का सहारा बनी हुई है। गनीमत ये है कि हमारी न्याय व्यवस्था अभी सियासत की तरह छुईमुई नहीं हुई है। अपनी स्वस्थ्य आलोचना को सुन और समझ लेती है।