टीवी पत्रकारिता इस समय जिस घनघोर संकट से गुज़र रही है उसके लिए आम तौर पर टीआरपी को दोषी ठहराकर छुट्टी पा ली जाती है। मगर यह अर्धसत्य है। भले ही टीआरपी ने न्यूज़ चैनलों को गड्ढे में गिरने को विवश किया हो, मगर वह इसके लिए अकेली कसूरवार नहीं है। सचाई यह है कि भारत में टीवी पत्रकारिता दोहरे हमले का शिकार हुई है। पहला हमला बेशक बाज़ार का था जो टीआरपी के ज़रिए हुआ, मगर दूसरा आक्रमण राजनीति की ओर से हुआ और इसकी शुरुआत छह साल पहले हुई जो कि अभी भी जारी है।