टीवी पत्रकारिता इस समय जिस घनघोर संकट से गुज़र रही है उसके लिए आम तौर पर टीआरपी को दोषी ठहराकर छुट्टी पा ली जाती है। मगर यह अर्धसत्य है। भले ही टीआरपी ने न्यूज़ चैनलों को गड्ढे में गिरने को विवश किया हो, मगर वह इसके लिए अकेली कसूरवार नहीं है। सचाई यह है कि भारत में टीवी पत्रकारिता दोहरे हमले का शिकार हुई है। पहला हमला बेशक बाज़ार का था जो टीआरपी के ज़रिए हुआ, मगर दूसरा आक्रमण राजनीति की ओर से हुआ और इसकी शुरुआत छह साल पहले हुई जो कि अभी भी जारी है।
TRP का दुष्चक्र-4: हिंदुत्व की राजनीति से गठजोड़ घातक?
- मीडिया
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- 29 Oct, 2020

टीआरपी आने के बाद से न्यूज़ चैनलों में नई गिरावट आई है, लेकिन यह अकेला ज़िम्मेदार नहीं है। इस पर दोहरा हमला हुआ। पहला हमला बाज़ार का था जो टीआरपी के ज़रिए हुआ, और दूसरा हमला राजनीति का हुआ। टीआरपी पर सत्य हिंदी की इस शृंखला की चौथी कड़ी में पढ़िए टीआरपी, हिंदुत्व की राजनीति और टीवी पत्रकारिता के बीच क्या है संबंध...
हमें दो महत्वपूर्ण तारीख़ें याद रखनी चाहिए। पहली 1991 की जब आर्थिक उदारवाद ने भारत को अपने नागपाश में लेना शुरू किया और दूसरी 2014 जब हिंदुत्व की उन्मादी राजनीति देश की सत्ता पर काबिज़ हुई। आज हम अगर न्यूज़ चैनलों के व्यवहार को लेकर सबसे ज़्यादा विचलित हैं तो इसलिए कि वे एकदम से सांप्रदायिक उन्माद से भर गए हैं और धार्मिक कट्टरता और नफ़रत का ज़हर पूरे देश में फैलाने में जुटे हुए हैं।