शिवसेना किसकी है? यानी पार्टी के नाम, चुनाव चिन्ह पर किसका हक है? एकनाथ शिंदे गुट का या फिर उद्धव ठाकरे गुट का? यह तय करने के लिए मामले को देख रहे चुनाव आयोग के सामने आज उद्धव ठाकरे की टीम ने अपनी दलील पेश की है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने आज चुनाव आयोग से कहा कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला धड़ा धनुष-बाण चिन्ह का दावा नहीं कर सकता क्योंकि वह और अन्य विधायक वाले उनके खेमे ने अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ दी थी।
तकनीकी रूप से पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने चुनाव आयोग से कहा है कि शिंदे खेमे के विधायकों की गिनती नहीं की जानी चाहिए क्योंकि उनके ख़िलाफ़ अयोग्यता याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
उद्धव ठाकरे गुट की ओर से चुनाव आयोग को यह जवाब तब दिया गया है जब उसने टीम ठाकरे से अंधेरी पूर्व क्षेत्र में आगामी विधानसभा उपचुनाव के लिए चुनाव चिन्ह पर एकनाथ शिंदे के दावे पर जवाब देने को कहा था।
'असली शिवसेना किसकी है' इस सवाल पर क़रीब दस दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने भी फ़ैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह तय करने पर रोकने से इनकार कर दिया है कि असली शिवसेना किसकी है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने उद्धव ठाकरे समूह द्वारा दायर स्टे की अर्जी खारिज कर दी। उद्धव ठाकरे के धड़े ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि चुनाव आयोग को असली शिवसेना और उसके चुनाव चिह्न पर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले समूह के दावे पर फ़ैसला करने से रोका जाए।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार जून महीने में गिरने और उनके पूर्व सहयोगी एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में सरकार बनाने के बाद यह मामला चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा।
बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने वाले शिंदे ने तख्तापलट के बाद उद्धव के पिता बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना पर दावा किया है। शिंदे ने 30 जून को मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, इसमें बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस उप-मुख्यमंत्री बने हैं।
बीजेपी द्वारा समर्थित शिवसेना के विद्रोह के बाद मुख्यमंत्री बने एकनाथ शिंदे के पास विधानसभा और संसद में पार्टी के अधिकांश विधायक हैं। उनका गुट अपने सदस्यों को शिवसेना नेताओं के रूप में मान्यता दिलाने में भी कामयाब रहा है।
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