भीमा-कोरेगाँव और उससे संबंधित एल्गार परिषद के मामले की जाँच को लेकर महाराष्ट्र में राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है लेकिन इस मामले में पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि वे इस मामले में अब तक जाँच के कुछ तथ्य लोगों के सामने लाना चाहते हैं। पवार के कहा कि जैसा मैंने पहले भी कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में पुलिस अधिकारियों की मदद से जाँच को एक अलग दिशा दी थी। उन्होंने कहा कि एल्गार परिषद के दौरान जिस शपथ को आधार बनाकर 'अर्बन नक्सल' जैसे शब्द को रचा गया उस प्रतिज्ञा को मैं ज़ाहिर रूप से आप लोगों को सुनाता हूँ। उन्होंने कहा कि प्रतिज्ञा थी- "मैं देश के संविधान और लोकतंत्र की रक्षा करूँगा। यह करते हुए मैं अपने आप को बेचूँगा नहीं। संविधान विरोधी बीजेपी और संघ से संबंधित किसी भी पार्टी को वोट नहीं दूँगा।"
पवार ने कहा कि इस प्रतिज्ञा में संविधान का उल्लेख किया गया है और लोकतंत्र की रक्षा की बात की गयी है फिर भी लोगों को जेल में डाल दिया गया। पवार ने कहा कि जो लोग वहाँ उपस्थित नहीं थे उन्हें भी जेल में डाला गया जिससे यह साफ़ होता है कि सत्ता का कैसे दुरुपयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि इसी वजह से यह प्रकरण और इसका सच मुझे लोगों के सामने लाना है। सरकार इस प्रकरण की जाँच के लिए चाहे जो प्रक्रिया अपनाए या चाहे जिस एजेंसी को जाँच सौंपे, मैं इस बात में उलझने की बजाय इस प्रकरण के सत्य को सबके सामने लाने का ज़्यादा प्रयास करूँगा।
उन्होंने कहा कि इस मामले में जिस तरह की जाँच पुणे पुलिस के कुछ अधिकारियों द्वारा की गयी है उससे पुलिस की छवि को भी नुक़सान हुआ है। उन्होंने कहा कि जाँच रिपोर्ट में पुलिस ने बताया था कि एल्गार परिषद में बीजेपी और संघ के ख़िलाफ़ प्रतिज्ञा की गयी है लेकिन वह प्रतिज्ञा क्या थी इस बात को ज़ाहिर नहीं किया।
बता दें कि सरकार बनते ही भीमा कोरेगाँव पर सवाल शरद पवार ने उठाया। इस मामले में 23 जनवरी 2020 को गृह मंत्रालय ने समीक्षा बैठक बुलाई जिसमें गृह मंत्री अनिल देशमुख, गृह राज्यमंत्री सतेज पाटिल और शंभुराजे देसाई के अलावा पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।
24 जनवरी को शरद पवार ने भीमा कोरेगाँव की जाँच पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस में सवाल उठाये और कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में दखल देकर पुलिस अधिकारियों की मदद से सामाजिक और मानवाधिकार के लिए संघर्ष करने वाले लोगों को निशाना बनाया और उनके ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए।
पवार ने यह भी कहा था कि इन आरोपियों के ख़िलाफ़ जो सबूत दिए गए वे भी आधे-अधूरे हैं और उन्हें अर्बन नक्सल कहकर सरकार ने कुछ और ही कहानी गढ़वायी है जिसका सच सामने आना चाहिए। पवार के इस पत्र को लेकर मुख्यमंत्री ठाकरे और गृह मंत्री देशमुख की बैठक भी हुई। बैठक में इस मामले की जाँच एसआईटी (SIT) से फिर से कराने का निर्णय लिया गया लेकिन कुछ ही घंटों में यह घोषणा हो गयी कि केंद्र सरकार ने यह जाँच एनआईए को सौंप दी। इस मामले में गृह मंत्री के फ़ैसले को इलाज करते हुए उद्धव ठाकरे ने भी जाँच एनआईए से कराने पर सहमति दे दी थी। जिसके बाद से ये सवाल उठने लगे थे कि क्या सत्ताधारी दलों में टकराव शुरू हो गया है। लेकिन शरद पवार के इस रुख से अब तसवीर का एक दूसरा पहलू भी सामने आने लगा है वह यह कि लगता है वे इस प्रकरण के माध्यम से दिल्ली की बीजेपी सरकार को भी घेरने की योजना बना रहे हैं।
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