चुनाव आयोग ने मंगलवार को जब महाराष्ट्र की सातारा लोकसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा की तो कई सवाल खड़े हुए। आयोग ने अभी 21 सितम्बर को ही प्रदेश के विधानसभा चुनावों के साथ ही सातारा उप चुनाव की घोषणा क्यों की थी? उसी दिन आयोग ने हरियाणा विधानसभा के चुनावों के साथ देश भर के विभिन्न राज्यों की 63 विधानसभा की सीटों पर तथा बिहार की समस्तीपुर लोकसभा सीट पर उप चुनाव की भी घोषणा की थी। समस्तीपुर लोकसभा से राम विलास पासवान के भाई चुनाव जीते थे लेकिन उनके निधन के बाद यह सीट रिक्त हो गयी है। ऐसे में सवाल यह है कि आयोग ने उसी दिन सातारा लोकसभा के उप चुनाव की घोषणा क्यों नहीं की, जो आज उसे तीन दिन बाद करनी पड़ी? क्या आयोग इस उपचुनाव की घोषणा को लेकर किसी के दबाव में है?
बहरहाल, महाराष्ट्र की सातारा लोकसभा सीट सीट पर 21 अक्टूबर को चुनाव होगा। राज्य में इसी दिन 288 विधानसभा सीटों पर भी मतदान होने हैं। आयोग ने कहा कि सातारा उपचुनाव की अधिसूचना शुक्रवार को जारी की जाएगी, वहीं नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि चार अक्टूबर रहेगी।
सातारा लोकसभा से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उदयनराजे भोसले चुनाव जीते थे जो 14 सितम्बर को पद से इस्तीफ़ा देकर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। भोसले छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज हैं। भोसले (53) सातारा लोकसभा से तीन बार- 2009, 2014 और 2019 में निर्वाचित हो चुके हैं।
उपचुनाव को लेकर नाराज़ हुए थे उदयनराजे?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मराठा मतदाताओं का समीकरण साधने के लिए बीजेपी ने उदयनराजे को साधा और अपनी पार्टी में शामिल करा लिया। जो ख़बर और चर्चाएँ राजनीतिक हलकों में चल रही हैं वह यह हैं कि उदयनराजे को यह विश्वास दिलाया गया था कि एक सप्ताह के अंदर विधानसभा चुनावों का जो कार्यक्रम घोषित होगा उसमें उनकी सीट के उप चुनाव की घोषणा भी हो जाएगी लिहाज़ा उन्हें अपने सांसद पद का लम्बे अरसे तक इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। लेकिन 21 सितम्बर को चुनाव आयोग ने जब विधानसभा चुनावों का कार्यक्रम घोषित किया और उसमें सातारा लोकसभा का कोई ज़िक्र नहीं हुआ तो अफ़वाहों का बाजार गर्म हो गया। बताया जाता है कि इसको लेकर उदयनराजे नाराज़ भी हो गए और वे सोमवार को पुणे में हुई भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जे पी नड्डा के कार्यक्रम से ही अनुपस्थित रहे।
उदयनराजे अपने स्वभाव को लेकर अक्सर ही चर्चाओं में रहा करते हैं। वह जब राष्ट्रवादी कांग्रेस में थे तब भी अपनी पार्टी लाइन के ख़िलाफ़ बयान दे दिया करते थे। बताया जा रहा है कि उदयनराजे की इस नाराज़गी को दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सक्रिय हो गए और इसका परिणाम मंगलवार को नज़र भी आ गया।
चुनाव आयोग ने सातारा लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव की तारीख़ तो घोषित कर दी लेकिन अधिसूचना चार दिन बाद शुक्रवार को जारी करने वाली है। लेकिन इस प्रक्रिया से क्या चुनाव आयोग की निष्पक्षता संदेह के घेरे में नहीं आती?
पिछले तीन-चार सालों में ऐसी बहुत-सी बातें हुई हैं जब चुनाव आयोग के कामकाज पर अंगुलियाँ उठीं। संविधान की धारा 324 में चुनाव आयोग को मुक्त और निष्पक्ष चुनाव कराने के व्यापक अधिकार दिये गये हैं। लेकिन आयोग की सबसे बड़ी जमा पूंजी है उसकी यह नैतिक ताक़त कि वह राजनीति के कीचड़-उछाल मैदान में बिना किसी पक्षपात के एक रेफ़री की हैसियत से अपना दायित्व निभाए। 2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणाओं को लेकर तो आयोग का जमकर सोशल मीडिया पर मज़ाक उड़ा था। यह आरोप लगाया गया था कि चुनाव आयोग प्रधानमंत्री की घोषणाओं का इंतज़ार करता है। उड़ीसा जैसे छोटे राज्य में चार चरणों में चुनाव कराना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में पुलिस अधिकारियों का तबादला लेकिन विपक्षी दलों की बार-बार माँग के बाद भी तमिलनाडु के डीजीपी का तबादला नहीं होना। नरेन्द्र मोदी केंद्रित फ़िल्म, वेब सीरियल तथा नमो चैनल का प्रदर्शन। गुजरात में उप चुनावों की शीघ्रता से घोषणा जबकि तमिलनाडु में उप चुनाव नहीं कराना। ये वे मामले हैं चुनाव कराने के निर्णयों के जिनको लेकर आरोप-प्रत्यारोप लगे और एक संवैधानिक संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए।
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