‘अपने 55 साल के राजनीतिक सफ़र में मैं कभी जेल नहीं गया, अभी भी कुछ लोगों को राजनीति से बाहर निकालने का माद्दा रखता हूँ, बूढ़ा नहीं हुआ हूँ। जो जेल की यात्रा कर चुके हैं, वे मुझसे सवाल पूछ रहे हैं कि मैंने 70 साल में किया क्या है? तो एक बात बताना चाहूंगा कि मैंने जो कुछ भला-बुरा किया हो लेकिन जेल नहीं गया हूँ।’ गत सप्ताह शरद पवार ने यह प्रतीकात्मक हमला किया था, केंद्रीय गृहमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह पर उनके एक बयान को लेकर। शाह ने चुनावी सभा में उनसे सवाल किया था कि ‘शरद पवार यह बताएं कि उन्होंने 70 साल में महाराष्ट्र के लिए क्या किया?’
लेकिन एक सप्ताह भी नहीं बीता और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार, उनके भतीजे अजित पवार सहित करीब 70 लोगों के ख़िलाफ़ महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (एमएससी) के 25 हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मामला दर्ज कर लिया! तो क्या यह शरद पवार को जेल की यात्रा कराने की कोशिश हो रही है?
यह सवाल उठना लाजमी है क्योंकि जिस सहकारी बैंक घोटाले को आधार बनाकर ईडी ने यह मामला दर्ज किया है, पुलिस में उसकी एफ़आईआर दर्ज कराने के लिए एक आरटीआई कार्यकर्ता को पांच साल लम्बी अदालती लड़ाई लड़नी पड़ी थी। परिवर्तन की राजनीति प्रवर्तन निदेशालय तक कैसे पहुंच जा रही है, यह सवाल अब आम लोगों में भी चर्चा का विषय बनता जा रहा है।
ठाकरे के बाद पवार!
पिछले महीने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे तो अब महाराष्ट्र ही नहीं देश की राजनीति के बड़े चेहरे शरद पवार! मामला भले ही भ्रष्टाचार का हो लेकिन लोगों में सवाल और चर्चा इसको लेकर राजनीतिक दृष्टिकोण से ही हो रही है। हालांकि शरद पवार ने बयान दिया है कि उन्हें अभी तक कोई नोटिस नहीं मिला है लेकिन बुधवार सुबह से बारामती ही नहीं प्रदेश के अधिकाँश बड़े शहरों में उनके समर्थक विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। यह मामला राजनीतिक द्वेष का है या नहीं इसे जानने के लिए थोड़ा इस प्रकरण को समझते हैं।
1961 में स्थापित महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के निदेशक मंडल और अध्यक्ष ने साल 2005 से 2010 के बीच कुछ कपास मिलों और चीनी कारखानों को बड़े पैमाने पर करोड़ों रुपये के ऋण वितरित किए। इस कर्ज को न चुकाने के कारण बैंक को भारी नुक़सान हुआ है।
बैंक के निदेशक मंडल में अजित पवार, विजयसिंह मोहिते-पाटिल, हसन मुश्रीफ, मधुकर चव्हाण, कांग्रेस नेता आनंदराव अडसुल शामिल थे। इस संबंध में सुरिंदर अरोड़ा नामक एक आरटीआई कार्यकर्ता ने सन 2015 में उच्च न्यायालय में शिकायत दर्ज करते हुए एडवोकेट सतीश तलेकर के माध्यम से उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी।
अदालत ने राज्य सरकार से पूछा था कि महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक के करोड़ों रुपये के घोटाले के मामले में तत्कालीन संचालकों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज क्यों नहीं किया गया? महाराष्ट्र में जब बीजेपी विपक्ष में थी तब उसने इस घोटाले के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी थी, लेकिन सत्ता में आने के बाद फडणवीस सरकार ने कोई भी कार्रवाई क्यों नहीं की।
न्यायमूर्ति सत्यरंजन धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की खण्डपीठ ने इस मामले में मुंबई पुलिस के आर्थिक अपराध जांच विभाग के पुलिस उपायुक्त को कोर्ट के आगे पेश होने का निर्देश दिया था।
क्लोजर रिपोर्ट की थी तैयारी!
दरअसल, इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट की तैयारी चल रही थी। इस बात का उल्लेख सरकारी वकील द्वारा न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति एसके शिंदे की खंडपीठ के सामने दी गयी दलील में है। सरकारी वकील की तरफ़ से कहा गया कि मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा ने बैंक से जुड़े मामले की जांच सरकार के अलग-अलग विभाग से मिली जानकारी के आधार पर पूरी कर ली है। चूंकि इस प्रकरण में कोई अपराध नहीं हुआ है। इसलिए अब वह इस मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 169 के तहत रिपोर्ट दायर करने की तैयारी में है।
लेकिन याचिकाकर्ता के वकील एसबी तलेकर ने कहा कि पुलिस ने इस प्रकरण को लेकर उनके मुवक्किल का बयान दर्ज किया है लेकिन बैंक घोटाले से जुड़े आरोपों को लेकर एफ़आईआर दर्ज नहीं की है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि पुलिस एफ़आईआर दर्ज किए बिना कैसे मामले को बंद करने के लिए रिपोर्ट दायर कर सकती है।
इस घोटाले के सम्बन्ध में नाबार्ड, सहकारिता व चीनी आयुक्त तथा कैग की रिपोर्ट के बाद भी आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया था, इसलिए अदालत को यह लग रहा था कि पूरे प्रकरण की जांच हो। अदालत ने 22 अगस्त को पांच दिन के अंदर एफ़आईआर दायर करने के आदेश दिए और उसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया।
पुलिस की एफ़आईआर को आधार बनाकर ईडी ने मामला दर्ज किया है। इस मामले में फडणवीस सरकार द्वारा भी मामला दर्ज नहीं किये जाने पर यह कयास लगाए जा रहे हैं कि वह भी इसे लेकर इतनी गंभीर नहीं थी। और उसका कारण यही हो सकता है कि आरोपियों की जो सूची है उसमें सत्ता और विपक्ष दोनों ही तरफ़ के नेताओं के नाम हैं।
इस प्रकरण को लेकर लोकसभा चुनाव और अब विधानसभा चुनाव के पहले कई नेताओं और अजित पवार तक पर दबाव बनाने का खेल हुआ। कई नेता आज सत्ताधारी दल की शरण में भी पहुंच चुके हैं। अब सवाल यह उठ रहे हैं कि जिस मामले में पांच साल तक एफ़आईआर करने में देरी हुई उसमें ठीक चुनाव से पहले इतनी तेजी कैसे आ गयी? क्या यह बदले की कार्रवाई है? शरद पवार और उनके साथी राजनीतिक दलों का तो यही कहना है। लेकिन बीजेपी इसे एक सरकारी प्रक्रिया बता रही है।
राज्य में विरोध-प्रदर्शन तेज
इसे लेकर प्रदेश का राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है। विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तथा यह और बढ़ सकते हैं। जब से अमित शाह ने शरद पवार से उनके योगदान को लेकर सवाल किया है तभी से एनसीपी ने इस मामले को मराठी बनाम गुजराती का रंग देना शुरू कर दिया है।
महाराष्ट्र में मराठी और गुजराती का वाद पुराना है। यह संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के साथ जुड़ा है। महाराष्ट्र और गुजरात का जब विभाजन हुआ तो मुंबई किसके साथ रहेगी उस समय यह आंदोलन खड़ा हुआ था। बकौल शरद पवार उनके ख़िलाफ़ ईडी के मामले की जो कार्रवाई हुई है वह पिछले कुछ दिनों में युवाओं में उनकी बढ़ती लोकप्रियता के कारण है।
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