महाराष्ट्र की अंधेरी ईस्ट सीट को लेकर बीजेपी-एकनाथ शिंदे गुट और शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट अभी तक अपने उम्मीदवारों को लेकर अंतिम फैसला नहीं कर सका है। इस साल जून में शिवसेना में हुई बगावत के बाद शिवसेना का उद्धव ठाकरे गुट और बीजेपी व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का गुट पहली बार किसी चुनाव में आमने-सामने दिखाई देगा।
शिवसेना यहां से रुतुजा लटके को चुनाव मैदान में उतारना चाहती है। रुतुजा लटके इस सीट से 2 बार विधायक रहे रमेश लटके की पत्नी हैं। रमेश लटके यहां से पार्षद भी रहे थे। रमेश लटके का कुछ महीने पहले निधन हो गया था।
रुतुजा लटके ने चुनाव मैदान में उतरने के लिए बीएमसी में अपनी नौकरी से 3 अक्टूबर को इस्तीफा दे दिया था। लेकिन बीएमसी की ओर से अभी तक उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं किया गया है। रुतुजा लटके बीएमसी में असिस्टेंट क्लर्क के पद पर हैं।
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बीएमसी के द्वारा इस्तीफा स्वीकार न करने के कारण रुतुजा लटके इस मामले में हाईकोर्ट चली गई हैं। उद्धव ठाकरे गुट के नेताओं का कहना है कि बीएमसी दबाव में है और इसलिए रुतुजा लटके का इस्तीफा स्वीकार नहीं कर रही है।
इस सीट पर नामांकन की अंतिम तारीख 14 अक्टूबर है और 3 नवंबर को मतदान होना है। साफ है कि नामांकन में अब कल का ही दिन बचा है।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीएमसी के अफसरों ने बताया है कि बीएमसी के कर्मचारियों को नौकरी छोड़ने से पहले 30 दिन का नोटिस पीरियड पूरा करना होता है।
महा विकास आघाडी में शामिल दल कांग्रेस और एनसीपी ने उद्धव ठाकरे गुट को समर्थन दिया है। जबकि दूसरी ओर बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट के उम्मीदवार को लेकर भी संशय है।
नाम वापस लेने के लिए तैयार
बीजेपी की ओर से यहां से मुर्जी पटेल के नाम का एलान किया गया था। लेकिन मुर्जी पटेल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है कि अगर पार्टी उनसे नाम वापस लेने को कहेगी तो वह इसके लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार इस मामले में फैसला लेंगे और वह पार्टी के फैसले का पालन करेंगे। साल 2019 में मुर्जी पटेल ने रमेश लटके के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे।
उद्धव की प्रतिष्ठा दांव पर
अंधेरी ईस्ट सीट पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की प्रतिष्ठा भी दांव पर है क्योंकि यह सीट शिवसेना के ही विधायक के निधन से खाली हुई है इसलिए उन पर इस सीट को जीतने का दबाव है। देखना होगा कि क्या उद्धव ठाकरे शिवसेना की इस सीट को बरकरार रख पाएंगे।
सियासी समीकरण बदले
महाराष्ट्र में नवंबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी ने मिलकर महा विकास आघाडी सरकार बनाई थी तो एक नए समीकरण का उदय हुआ था। इससे पहले महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी और शिवसेना-बीजेपी का गठबंधन होता था लेकिन महा विकास आघाडी के नए गठबंधन के बाद बीजेपी अलग-थलग पड़ गई थी। जून में शिवसेना में हुई बगावत के बाद बीजेपी को राज्य की सत्ता में वापसी करने का मौका मिला है।
शिवसेना पर कब्जे की जंग
शिवसेना में हुई बगावत के बाद उद्धव ठाकरे का गुट भी कमजोर पड़ गया है क्योंकि बड़ी संख्या में शिवसेना के विधायक, सांसद और जिला प्रमुख एकनाथ शिंदे के गुट के साथ आ गए हैं। शिवसेना पर कब्जे की जंग भी दोनों गुटों के बीच जोर-शोर से जारी है और इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने शिवसेना के अधिकृत चुनाव चिन्ह धनुष और बाण को फ्रीज कर दिया है और दोनों ही पार्टियों को नए चुनाव चिन्ह के साथ ही नए नाम भी दे दिए हैं।
एकनाथ शिंदे गुट को दो तलवार और ढाल दी गई है जबकि उद्धव ठाकरे गुट को मशाल का चुनाव चिन्ह मिला है।
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