तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर और कामरेड गोविंद पानसरे की हत्या के मामले में चल रही जांच को लेकर एक बार फिर बॉम्बे हाई कोर्ट ने जाँच एजेंसियों को फटकार लगाई है। फरवरी 2020 में भी हाई कोर्ट ने ऐसे ही शब्दों में फटकारा था। लेकिन एक साल में अदालत को जांच प्रक्रिया में कोई सुधार नहीं दिखा और उसने फिर से कड़े शब्दों में जाँच अधिकारियों को डांटा है।
अदालत ने कहा कि हम जाँच एजेंसियों पर शक नहीं कर रहे, लेकिन जांच सही दिशा में चल रही है, यह दिखाई भी देना चाहिए। यदि कोई अधिकारी इस जांच में देरी की कोशिश कर रहा होगा तो हम उसे छोड़ेंगे नहीं। अदालत ने कहा कि नरेंद्र दाभोलकर की हत्या हुए आठ साल हो गए जबकि गोविंद पानसरे की हत्या को छह साल।
अदालत ने कहा, पड़ोसी प्रदेश कर्नाटक में तो गोविंद पानसरे के मामले में मुक़दमा भी शुरू हो चुका है लेकिन हमारे यहाँ तो अभी तक जाँच ही चल रही है और यह कब तक चलेगी यही पता नहीं चल रहा है।
हाई कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की देरी से न्याय व्यवस्था पर लोगों के भरोसे को धक्का पहुंचता है। ऐसे गंभीर मामलों में जांच त्वरित होनी चाहिए ताकि इस प्रकार की वारदातों पर अंकुश लगे तथा लोगों में भी विश्वास बढ़े कि कार्रवाई होती है। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की घटनाएं भविष्य में न हों इस दिशा में भी प्रयास किये जाने चाहिए।
यह पहली बार नहीं है जब अदालत ने दाभोलकर मामले में जांच एजेंसियों को फटकार लगाई है।
पिछले दो-तीन सालों से अदालत जिस तरह से इस मामले में महाराष्ट्र पुलिस पर टिप्पणियां कर रही है वह साधारण नहीं है और सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस इतनी लापरवाह हो गयी है या राजनीतिक दबाव उसकी जांच प्रक्रिया को पंगु कर रहा है।
कई मामलों में फटकार
दाभोलकर-पानसरे की जांच का मामला हो, भीमा-कोरेगांव और उससे उपजे शब्द अर्बन नक्सल का प्रकरण, सनातन संस्था के ख़िलाफ़ चल रही जांच हो या महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक मामला जिसमें अजीत पवार सहित कई राजनेता आरोपी थे, इन सभी मामलों में अदालत ने ना सिर्फ जांच एजेंसियों के कामकाज पर उँगली उठाई है, अपितु उन्हें फटकार लगाई है कि वे मामलों की जांच क्यों नहीं कर रहे हैं?
पहले भी जताई थी नाराज़गी
फरवरी 2020 में भी बॉम्बे हाई कोर्ट ने अंधश्रद्धा निर्मूलन संस्था के संस्थापक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और कामरेड गोविंद पानसरे की हत्या की जांच के मामले में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच को लेकर नाराजगी जताई थी। अदालत ने तब कहा था कि इन दोनों प्रकरण को क्रमशः सात और पांच साल हो गए हैं लेकिन इन पर मुकदमे की शुरुआत नहीं हुई? कब तक ऐसा ही चलता रहेगा? आखिर कब इस मामले की शुरुआत होगी?
अदालत ने सीबीआई और एसआईटी दोनों की जांच पर असंतोष जताते हुए कहा था कहा कि वे 24 मार्च 2020 तक यह स्पष्ट करें कि इस प्रकरण में मुकदमा कब शुरू होगा। न्यायमूर्ति सत्यरंजन धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति रियाज छागला ने कहा था कि आप लोग इन हत्याकांडों में प्रयुक्त हुए हथियार ही अब तक ढूंढ रहे हैं। कम से कम यह तो बता दें कि यह मामला आगे कैसे बढ़ेगा?
अदालत ने कहा कि दाभोलकर-पानसरे परिवार के अलावा इस मामले में जो लोग जेल में हैं यह उनके भी मूलभूत हक की बात है कि उनको कब तक कैद में रखा जाए? उन्हें भी अपने आपको निर्दोष साबित करने का हक तो मिलना चाहिए या नहीं?
अदालत ने फ़रवरी 2020 में भी यह बात दोहराई थी कि आप अपनी जांच की वजह से अदालत की कार्य प्रणाली को असफल बनाने की कोशिश नहीं करें। लेकिन उसके बाद कोरोना की वजह से लॉकडाउन शुरू हो गया।
इस मामले में अदालत ने एक-दो नहीं कई बार पुलिस की जांच प्रक्रिया को आड़े हाथों लिया और इसीलिए यह सवाल गहराता जा रहा है कि आखिर क्या मजबूरी है कि पुलिस बार-बार अदालत की डांट सुनने के बाद भी जांच को आगे नहीं बढ़ा रही है?
उल्लेखनीय है कि अप्रैल 2019 में इस मामले में हाई कोर्ट ने राजनीतिक दलों को सलाह दी थी कि वे 'विरोध की आवाजों को दबने ना दें'। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा था कि देश में कोई भी संस्थान सुरक्षित नहीं है। भले ही वो न्यायपालिका ही क्यों न हो।
हाई कोर्ट ने कहा था, “भारत की छवि अपराध और बलात्कार वाले देश की बन गई है। देश ऐसी 'दुखद स्थिति' का सामना कर रहा है जहां कोई भी किसी से बात नहीं कर सकता या उन्मुक्त नहीं घूम सकता है। अधिकारी इस जांच को अत्यावश्यक रूप में नहीं ले रहे हैं। दाभोलकर और पानसरे की हत्या की जांच में और देरी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
महाराष्ट्र सीआईडी तथा सीबीआई की तरफ से पेश गोपनीय रिपोर्ट को कोर्ट ने वापस कर दिया था और कहा था कि इन रिपोर्ट में कुछ भी गोपनीय नहीं है और सभी विपक्षी और उदारवादी मूल्यों का सफाया एक खतरनाक प्रवृत्ति है।
दाभोलकर-पानसरे मामले में अदालत ने यह भी एहसास दिलाया था कि किस तरह से कर्नाटक पुलिस इसी प्रकार के गौरी लंकेश हत्याकाण्ड में आरोपियों तक पंहुचकर उन्हें गिरफ्तार कर पूरी साजिश का पटाक्षेप कर देती है और महाराष्ट्र पुलिस या सम्बंधित जांच एजेंसियां इस बात को लेकर समय बर्बाद कर रही हैं कि दाभोलकर पर जो गोलियां दागी गई हैं, उन्हें जांच के लिए स्कॉटलैंड यार्ड के पास भेजा जाए या गुजरात के पास।
अदालत ने इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को फटकार लगाते हुए कहा था कि राजनीतिक दलों और उनके प्रमुखों को परिपक्वता दिखानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे की हत्याओं की जांच में कोई बाधा पैदा नहीं हो।
अंधश्रद्धा के ख़िलाफ़ अलख जगाने वाले महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेन्द्र दाभोलकर की पुणे में 20 अगस्त 2013 को उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जब वे सुबह की सैर के लिए निकले थे। वहीं, सीपीएम नेता और तर्कवादी पानसरे की 16 फरवरी 2015 को पश्चिमी महाराष्ट्र में कोल्हापुर स्थित उनके आवास के पास गोली मार कर हत्या की गयी थी।
कलबुर्गी, गौरी की हत्या
30 अगस्त, 2015 को एमएम कलबुर्गी की हत्या कर्नाटक के धारवाड़ में और 5 सितंबर 2017 को मशहूर पत्रकार और लेखिका गौरी लंकेश की हत्या बेंगलुरु स्थित उनके आवास पर की गयी थी। महाराष्ट्र में डॉक्टर दाभोलकर की हत्या की जांच हाई कोर्ट की निगरानी में चल रही है।
राज्य पुलिस और सीआईडी द्वारा जाँच में लेटलतीफी पाए जाने पर उच्च न्यायालय ने मई 2014 में जाँच सीबीआई को सौंप दी। लेकिन अभी भी कुछ ठोस निकलकर नहीं आने से अदालत ने कड़ा रुख अख्तियार किया है।
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