शिक्षा के भगवाकरण का आरोप बीजेपी-शासित राज्य सरकारों पर कई बार लगे हैं। यह कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी सोची समझी रणनीति के तहत अपने आदर्श लोगों पर थोपने के अजंडे पर काम कर रही है। ताज़ा उदाहरण है नागपुर विश्वविद्यालय का है। राष्ट्रसंत तुकदोजी महाराज राष्ट्रीय नागपुर विश्वविद्यालय ने अब अपने छात्रों को आरएसएस का इतिहास पढाने का फ़ैसला किया है।
‘राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका’
विश्वविद्यालय ने बी. ए. इतिहास के द्वितीय वर्ष के सिलेबस में आरएसएस को पढ़ाने का निर्णय किया है। इतिहास के पाठ्यक्रम के तीसरे हिस्से में ‘राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका’ को जोड़ा गया है। इसके पहले हिस्से में कांग्रेस पार्टी की स्थापना, राजनीति का स्वरूप, जवाहर लाल नेहरू का सामने आना और उनका विकास है तो दूसरे हिस्से में असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन शामिल किया गया है। इसी तरह तीसरे हिस्से में कैबिनेट मिशन और राष्ट्र निर्माण में आरएसएस की भूमिका को रखा गया है।
विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़ के सदस्य सतीश चापले ने पीटीआई से इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि इतिहास में यह नया ट्रेंड है। उन्होंने कहा कि मार्क्सवाद, नया मार्क्सवाद और नया आधुनिकतावाद भी पढाया जाता है।
उन्होंने सिलेबस में आरएसएस को शामिल किए जाने के फ़ैसले को सही ठहराते हुए कहा कि राष्ट्रवादी विचारधारा और लाला लाजपत राय जैसे नेता भी इतिहास के हिस्सा रहे हैं।
इसके पहले इस विश्वविद्यालय में 2003-04 के दौरान इतिहास एम. ए. के छात्रों को आरएसएस के बारे में पढ़ाया जाता था।
महाराष्ट्र कांग्रेस ने आरएसएस को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने का विरोध किया है। उन्होंने ट्वीट कर पूछा, ‘नागपुर विश्वविद्यालय को राष्ट् निर्माण में आरएसएस की भूमिका कहाँ मिली? यह तो सबसे विभाजनकारी ताक़त रही है, जिसने अंग्रेज़ों के साथ मिलीभग कर आज़ादी की लड़ाई का विरोध किया था और 52 साल तक तिरंगा झंडा नहीं फहराया था। वह संविधान की जगह मनुस्मृति लागू करना चाहता है।’
बीजेपी सरकारों पर शिक्षा के भगवाकरण के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार पर आरोप लगा था कि उसने महाराणा प्रताप-अकबर की लड़ाई को तोड़ मरोड़ कर स्कूल के इतिहास की किताब में डाला था। उसमें हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप को विजेता बताया गया था।
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