मनोज जारांगे पाटिल के नेतृत्व में चल रहे मराठा आंदोलन से पूरी महाराष्ट्र सरकार परेशान है। मराठा आरक्षण की मांग को लेकर वह भूख हड़ताल पर बैठे हैं। उनके समर्थक कई बार हिंसा पर उतर आए हैं और विधायकों के घर तक फूंक दिए गए। समर्थन में सांसद तक इस्तीफा दे चुके हैं। उग्र हो रहे प्रदर्शन के बीच छत्रपति संभाजीनगर जिले में मोबाइल और ब्रॉडबैंड इंटरनेट को अगले 48 घंटे के लिए बंद कर दिया गया है। सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी बैकफुट पर नज़र आ रहे हैं। तो सवाल है कि आख़िर ऐसी स्थिति पैदा करने वाले मराठा आंदोलन का नेतृत्वकर्ता मनोज जारांगे पाटिल कौन हैं? वह इस हैसियत में आख़िर कैसे पहुँच गए।
मनोज जारांगे पाटिल नाम के 40 वर्षीय किसान मराठा आरक्षण आंदोलन के चेहरे के रूप में महाराष्ट्र में सबसे प्रभावशाली आवाज़ों में से एक बनकर उभरे हैं। जारांगे मराठा समुदाय को आरक्षण दिलाने के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं और भारी भीड़ जुटा रहे हैं।
वह कई दिनों से भूख हड़ताल पर हैं। उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने उनकी मांग नहीं मानी तो वह पानी पीना भी बंद कर देंगे। राज्य में मराठा आरक्षण अब बड़ा मुद्दा बन गया है। इसमें महाराष्ट्र की लगभग 30 प्रतिशत आबादी शामिल है। यह एक बड़ी वजह है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी इसको दरकिनार नहीं कर सकती है।
हालाँकि, राजनीतिक दल भी अजीब मुश्किल में फँसे हैं। एक तरफ़ तो सुप्रीम कोर्ट का नियम है कि 50 फीसदी से ज़्यादा आरक्षण नहीं दे सकते हैं और यदि मराठा को ओबीसी आरक्षण में शामिल करते हैं तो ओबीसी की अन्य जातियाँ खफा होंगी। यही वजह रही है कि मराठा आरक्षण का मुद्दा इतने लंबे समय से लटका रहा है। अब जब मनोज जारांगे पाटिल के नेतृत्व में फिर से यह आंदोलन उबाल पर है तो शिंदे सरकार इससे निपटने की कोशिश में जुटी है।
हाल में उनकी भूख हड़ताल ने महाराष्ट्र में हलचल मचा दी है। सीएम शिंदे को पिछले हफ्ते पाटिल को फोन करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
माध्यमिक स्तर तक पढ़ाई करने वाले किसान जारांगे क़रीब 15 वर्षों से मराठा आरक्षण आंदोलन का हिस्सा रहे हैं। वह मूल रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले के मटोरी गांव के रहने वाले हैं। लेकिन वह जालना जिले के अंबाद में बस गए हैं, जहां से वह आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं।
वह फिलहाल किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े नहीं हैं और वह लगातार कह रहे हैं कि उनका आंदोलन अराजनीतिक है। हालाँकि, वह 2004 तक कांग्रेस के जिला युवा अध्यक्ष थे। लेकिन बाद में मराठा समुदाय की मज़बूती के लिए पार्टी से अलग होकर शिवबा संगठन बना लिया। वह लगातार मराठा समुदाय के आरक्षण के लिए मांग उठाते रहे हैं।
एक रिपोर्ट के अनुसार जारांगे ने विरोध प्रदर्शन की फंडिंग के लिए लगभग दो एकड़ की अपनी जमीन बेच दी। वह आरक्षण की मांग को लेकर आत्महत्या करने वाले मराठा युवाओं के परिजनों के लिए 50 लाख रुपये की वित्तीय सहायता और सरकारी नौकरी की मांग कर रहे हैं।
वह 25 अक्टूबर से जालना के अंतरवाली सरती गांव में अनशन पर हैं। हाल के दिनों में यह उनकी दूसरी भूख हड़ताल है। समझा जाता है कि मराठा आरक्षण आंदोलन में वर्षों से एक मज़बूत चेहरे की कमी थी। तो क्या वह उस नेतृत्व की कमी को भर पाएँगे?
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