यह सवाल राजनीति में रुचि रखने वाले हर इंसान के ज़ेहन में चल रहा है और चर्चा का विषय भी बना हुआ है। कारण यह कि महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार के हाथों से सिर्फ सत्ता ही नहीं गयी अपितु संगठन भी खिसकने की प्रबल आशंकाएं नजर आ रहीं हैं।दो तिहाई विधायकों की बगावत के बाद आधे से ज्यादा सांसदों का टूटना और बागियों द्वारा नयी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन कर अपने आपको "असली शिवसेना " होने का दावा करना तथा शिवसेना भवन पर कब्ज़ा करने की बातें करना बहुत से सवाल खड़े कर रहा है। एकनाथ शिंदे के साथ बग़ावत करने वाले विधायकों की पहचान क्या होगी ? यह सवाल अब गौण सा हो गया है। सवाल यह खड़ा हो गया है कि इतनी बड़ी संख्या में चुने हुए जनप्रतिनिधि एक साथ आकर क्या " शिवसेना " पर आधिपत्य जमा लेंगे? या फिर अपने शिव सैनिकों के दम पर उद्धव ठाकरे, शिवसेना प्रमुख का ताज़ और महाराष्ट्र की राजनीति के सत्ता का केंद्र माने जाने वाले " मातोश्री " या दादर स्थित शिवसेना का जलवा बरकरार रख पाएंगे ?