महाराष्ट्र में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी और महा विकास अघाडी सरकार के रिश्ते और ख़राब हो सकते हैं। अघाडी सरकार उसके द्वारा राज्यपाल को भेजे गए 12 नामों को मंजूरी न दिए जाने के मामले को लेकर राज्यपाल के ख़िलाफ़ क़ानूनी क़दम उठाने पर विचार कर रही है। ये उन 12 लोगों के नाम हैं, जिन्हें विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफ़ारिश ठाकरे कैबिनेट ने बीते साल नवंबर के पहले सप्ताह में की थी। लेकिन कई महीने बाद भी राज्यपाल कोश्यारी ने इन नामों पर अपनी सहमति नहीं दी है।
शिव सेना के प्रवक्ता और सांसद संजय राउत ने इस मामले में कहा है कि तीन महीने से ज़्यादा वक़्त बीतने के बाद भी राज्यपाल न तो इन नामों को स्वीकार कर रहे हैं और न ही इन्हें खारिज कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल अनिश्चित काल के लिए इन सिफ़ारिशों को रोक कर नहीं रख सकते। महाराष्ट्र की विधान परिषद में 78 सदस्य हैं।
राउत ने कोश्यारी पर हमला बोला और कहा, ‘राज्यपाल को किसी एक विशेष पार्टी के एजेंट के रूप में काम नहीं करना चाहिए। इससे भविष्य में जो लोग गवर्नर बनेंगे, उन तक ग़लत संदेश जाएगा।’
शिव सेना सांसद राउत ने कहा कि यह और कुछ नहीं बल्कि लोकतंत्र का क़त्ल है। उन्होंने कहा कि अगर राज्यपाल संवैधानिक नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं तो केंद्र को उन्हें वापस बुला लेना चाहिए।
राउत ने कहा कि महा विकास अघाडी सरकार राज्यपाल के इस असंवैधानिक कृत्य के लिए उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की संभावनाओं को तलाश रही है। उन्होंने कहा कि इन 12 नामों को लेकर राजनीति की जा रही है।
महा विकास अघाडी के दूसरे दल एनसीपी ने भी इस मामले में सवाल उठाया है। एनसीपी नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा है कि वह इस मामले में राज्यपाल से मिलने की योजना बना रहे हैं। इस मामले में ठाकरे सरकार कई बार राज्यपाल को रिमांइडर भी भेज चुकी है।
पहले भी हुआ था विवाद
पिछले साल उद्धव ठाकरे के विधान परिषद का सदस्य बनने को लेकर भी विवाद हुआ था। राज्य कैबिनेट की ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफ़ारिश पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने लंबे समय तक जवाब नहीं दिया था।
इस मामले के आगे बढ़ने के बाद उद्धव ठाकरे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़ोन करना पड़ा था। उसके बाद ही राज्यपाल ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर राज्य विधान परिषद की रिक्त सीटों के चुनाव कराने का अनुरोध किया था।
कंगना के मामले में एंट्री
बीते साल महाराष्ट्र सरकार और कंगना रनौत के बीच चले घमासान में भी राज्यपाल कोश्यारी ने एंट्री ले ली थी। बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) द्वारा कंगना के ऑफ़िस में तोड़फोड़ करने पर कोश्यारी ने नाराज़गी जताई थी और इसे लेकर केंद्र सरकार को रिपोर्ट भेजी थी।
सेक्युलर कैसे बन गए?
कोरोना महामारी के दौरान बीते अक्टूबर में जब मंदिर खोलने को लेकर बीजेपी सड़क पर उतरी थी तब भी कोश्यारी बीच में कूद पड़े थे और उनकी एक टिप्पणी को लेकर खासा विवाद हुआ था। कोश्यारी ने उद्धव ठाकरे को बेहद तीखी चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने उद्धव पर तंज कसते हुए कहा था, ‘आप हिंदुत्व के मजबूत पक्षधर रहे हैं और ख़ुद को भगवान राम का भक्त बताते हैं। लेकिन क्या अब आप सेक्युलर हो गए हैं?’
उद्धव ने भी चिट्ठी का जवाब देते हुए लिखा था कि उन्हें हिंदुत्व के लिए किसी के सर्टिफिकेट की ज़रूरत नहीं है। उद्धव ने कहा था, 'मुंबई को पीओके बताने वाली का स्वागत करने वाले हिंदुत्व के मेरे पैमाने पर खरे नहीं उतरते। सिर्फ़ धार्मिक संस्थानों को खोल देना हिंदुत्व नहीं है।’
तड़के दिला दी थी शपथ
नवंबर, 2019 में एक दिन तड़के लोग तब अवाक रह गए थे जब यह पता चला कि राज्यपाल कोश्यारी ने राज्य में लगे राष्ट्रपति शासन को रात में ही हटा दिया और देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिला दी। शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस ने राज्यपाल के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट के फ़ैसले के तुरंत बाद फ़्लोर टेस्ट कराया गया और फडणवीस सरकार को इस्तीफ़ा देना पड़ा था।
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