महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले किए गए सर्वे में सामने आया है कि बेरोजगारी और महंगाई चुनाव में सबसे बड़े मुद्दे हो सकते हैं। अधिकतर मतदाता मानते हैं कि महंगाई बढ़ी है। सर्वे किए गए लोगों में से एक चौथाई लोगों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी है।
यह सर्वे एमआईटी-एसओजी-लोकनीति-सीएसडीएस ने किया है। सर्वेक्षण में राज्य में मतदाताओं की भावनाओं और राजनीतिक गठबंधनों के लिए उनकी प्राथमिकताओं का पता चलता है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में क़रीब एक चौथाई यानी 24% मतदाताओं ने बेरोजगारी को अपना प्राथमिक मुद्दा बताया है जबकि 22% यानी क़रीब पांचवें हिस्से ने महंगाई को बड़ा मुद्दा माना है।
रिपोर्ट के अनुसार सर्वेक्षण में पता चला है कि विकास की कमी को 9%, कृषि संबंधी मुद्दे को 8% और बुनियादी ढाँचे की चुनौतियाँ को 7% ने बड़ा मुद्दा माना। सर्वेक्षण में जो सबसे अहम बात सामने आयी है वह आर्थिक स्थिरता और नौकरी के अवसरों के बारे में बढ़ते मतदाता असंतोष को दिखाता है। माना जा रहा है कि ये मुद्दे चुनावी चर्चा में हावी रह सकते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार चार में से तीन मतदाता यानी 74% मानते हैं कि पिछले पांच वर्षों में महंगाई बढ़ी है, जबकि लगभग आधे यानी 51% मतदाताओं ने इसी अवधि के दौरान भ्रष्टाचार में वृद्धि होने की बात कही है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश मतदाताओं का मानना है कि ज़रूरी सामानों की क़ीमतें सामान्य प्रवृत्ति से कहीं अधिक बढ़ गई हैं। आर्थिक स्थिति के बिगड़ने की यह धारणा राजनीतिक रणनीतियों को प्रभावित कर सकती है। ये मुद्दे पार्टियों के घोषणापत्र और अभियानों में भी प्रमुखता से दिख सकते हैं।
आरक्षण नीतियों के बारे में चिंतित लोग भी महायुति (26%) की तुलना में एमवीए (46%) की ओर झुके दिखते हैं। महंगाई को एक प्रमुख मुद्दे के रूप में प्राथमिकता देने वाले मतदाताओं के बीच एमवीए के लिए समर्थन थोड़ा बढ़ जाता है।
महिलाओं की सुरक्षा और भ्रष्टाचार के बारे में चिंतित लोग एमवीए के मुकाबले महायुति को ज़्यादा पसंद करते हैं। जबकि एमवीए को आर्थिक मुद्दों पर ज़्यादा मज़बूत माना जाता है, महिलाओं की सुरक्षा और भ्रष्टाचार विरोधी सुनिश्चित करने में महायुति की ताकत मतदाताओं के फ़ैसलों को प्रभावित कर सकती है।
पिछले ढाई साल से महाराष्ट्र में महायुति सरकार है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नेतृत्व कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के लिए राज्य का राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में विभिन्न मापदंडों पर मौजूदा सरकार के प्रदर्शन के बारे में मतदाताओं की धारणाओं का आकलन करने के लिए कुछ प्रश्न पूछे गए। अधिकांश उत्तरदाता इन मापदंडों से न तो पूरी तरह संतुष्ट हैं और न ही पूरी तरह असंतुष्ट, जबकि कुल मिलाकर सरकार के प्रदर्शन के लिए अप्रूवल रेटिंग बनी हुई है।
प्रदर्शन के सभी क्षेत्रों में से केवल सड़कों और पुलों की स्थिति में ही पिछले पांच वर्षों में सुधार को स्वीकार करने वाले उत्तरदाताओं की संख्या अधिक है, जबकि जिन लोगों ने कोई बदलाव नहीं देखा, उनकी संख्या कम है। अन्य सभी क्षेत्रों में उत्तरदाताओं की संख्या अधिक है, जिन्होंने कहा कि स्थिति या तो वैसी ही रही या और खराब हो गई। ये क्षेत्र कानून और व्यवस्था से लेकर महिलाओं की सुरक्षा, साथ ही यातायात की स्थिति, बाढ़ और पेयजल आपूर्ति तक के थे।
जिन उत्तरदाताओं को लगा कि हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है या स्थिति और खराब हुई है, उनका संयुक्त प्रतिशत उन लोगों से कहीं ज़्यादा था, जो मानते थे कि सुधार हुआ है। साथ ही, जिन उत्तरदाताओं ने स्थिति में गिरावट का अनुभव किया, उनका प्रतिशत उन लोगों से थोड़ा कम था, जिन्होंने सुधार का अनुभव किया।
गौरतलब है कि जब पूछा गया कि क्या उद्धव ठाकरे सरकार की तुलना में शिंदे सरकार के तहत भ्रष्टाचार का स्तर बढ़ा है या घटा है, तो 10 में से सिर्फ़ एक (11%) उत्तरदाताओं ने कहा कि मौजूदा सरकार के तहत भ्रष्टाचार में कमी आई है। पाँच में से दो (42%) मतदाताओं का मानना था कि महायुति सरकार के तहत भ्रष्टाचार बढ़ा है। एक तिहाई से थोड़ा ज़्यादा (37%) ने जवाब दिया कि मौजूदा सरकार के तहत भ्रष्टाचार के स्तर में कोई बदलाव नहीं आया है।
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