“
दरअसल, ये हालात भाजपा की वजह से बने। भाजपा नासिक सीट पर अपना उम्मीदवार चाहती थी। फिर उसने शर्त रख दी कि एनसीपी अजीत पवार गुट को अगर चुनाव लड़ना है तो वो भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़े। छगन भुजबल ने भाजपा चुनाव निशान पर लड़ने से मना कर दिया। भुजबल ने कहा कि वो सिर्फ एनसीपी के निशान पर ही लड़ सकते हैं।
छगन भुजबल ने घोषणा की कि वह इसलिए पीछे हट रहे हैं क्योंकि महायुति में मतभेद है। महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार प्रचार में आगे निकल गए हैं। हालांकि, महायुति का उम्मीदवार घोषित नहीं होने से इस सीट पर संकट हो सकता है। छगन भुजबल ने कहा कि जितनी देरी होगी, उतना नुकसान होगा। भुजबल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा- मुझ पर भरोसा करने के लिए मैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह का आभारी हूं।' मेरे नाम पर चर्चा के बाद मैंने देवेंद्र फडणवीस और बावनकुले से चर्चा की। देवेंद्र फडणवीस ने कहा, मोदी साहब का संदेश है कि लड़ना होगा। इसलिए चर्चा के अनुसार ही सीट की घोषणा होनी चाहिए थी। अब 3 हफ्ते हो गए हैं। हालाँकि, मैं अब पीछे हट रहा हूँ। इस बिंदु पर तत्काल निर्णय लिया जाना चाहिए था। भुजबल ने यह भी कहा कि आगे कोई समस्या नहीं आनी चाहिए।
दूसरी ओर, शिवसेना शिंदे गुट के मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे ने एक बार फिर उम्मीदवारी के लिए जोर लगाना शुरू कर दिया है। इस सीट का झगड़ा अभी भी नहीं सुलझा है क्योंकि राष्ट्रवादी अजीत पवार गुट के मंत्री छगन भुजबल भले ही पीछे हट गए हैं लेकिन वो चाहते हैं कि उन्हें मनाया जाए। जबकि बीजेपी ने यह दावा करते हुए इस सीट की मांग की है कि नासिक में हमारी ताकत ज्यादा है। यानी सारा पेंच भाजपा ने फंसा दिया है।
कुछ दिन पहले ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अजीत पवार के प्रदेश अध्यक्ष सुनील तटकरे ने कहा था कि हमने नासिक लोकसभा पर अपना दावा नहीं छोड़ा है। शिवसेना का शिंदे गुट भी इस बात पर अड़ा है कि नासिक की सीट शिवसेना को मिलनी चाहिए। अब किसे मिलेगी नासिक की जगह? यह देखना महत्वपूर्ण होगा।
अपनी राय बतायें