आईआईटी बॉम्बे के हॉस्टल में रहने वाले छात्र अब ऐसे किसी विरोध-प्रदर्शन या गतिविधि में शामिल नहीं हो सकते हैं जो संस्थान को पसंद नहीं होगा। इसके लिए संस्थान ने चिट्ठी भी भेज दी है। चिट्ठी में कहा गया है कि छात्र न तो किसी राष्ट्रविरोधी और न ही किसी अन्य ऐसी दूसरी गतिविधि में शामिल हो सकते हैं। हालाँकि, इसमें यह नहीं बताया गया है कि कौन सी गतिविधि राष्ट्रविरोधी कही जाएगी और कौन सी नहीं। इसका मतलब क्या है? क्या छात्र विरोध-प्रदर्शन नहीं कर पाएँगे, क्योंकि किसी भी गतिविधि को राष्ट्रविरोधी घोषित किया जा सकता है? यह सवाल इसलिए भी कि आईआईटी बॉम्बे में हाल के दिनों में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त प्रदर्शन हुए हैं और इससे संस्थान के अधिकारी काफ़ी असहज महसूस कर रहे थे। आईआईटी बॉम्बे का यह फ़रमान उस समय आया है जब कर्नाटक के एक स्कूल में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ नाटक का मंचन करने पर स्कूल के ख़िलाफ़ देशद्रोह का केस दर्ज किया गया है।
अब आईआईटी बॉम्बे में जो नया आदेश आया है उसे भी उसी संदर्भ में देखा जा रहा है। 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार, संस्थान के छात्र मामलों के डीन ने कल एक ईमेल भेजा। इसमें छात्रों को चेतावनी देने वाले 14 अन्य निर्देश दिए गए हैं। इसके तहत भाषण, नाटक और संगीत पर पाबंदी लगा दी गई है। इसके लिए तर्क दिया गया है कि इससे हॉस्टल में शांति का माहौल भंग होता है। इसके अलावा कैंपस में पोस्टर, पैम्फलेट जैसी सामग्री बाँटने पर भी रोक लगाई गई है। इसे मंगलवार से ही संस्थान में लागू भी करने की बात कही गई है।
जब से बीजेपी सत्ता में आई है तब से उस पर आरोप लगते रहे हैं कि वह विरोध की आवाज़ को दबा रही है और संस्थानों की स्वायत्तता ख़तरे में है। जब नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए तो पार्टी के कई नेताओं ने विरोध करने वालों को राष्ट्रविरोधी क़रार देना शुरू किया। बीजेपी नेता विजय गोयल ने इसी महीने नागरिकता क़ानून का विरोध करने वालों को राष्ट्रविरोधी घोषित करने को कहा था। देश भर में विरोध प्रदर्शनों के बीच ही अनुराग ठाकुर की रैली में भी 'देश के गद्दारों को... गोली मारो सालों को' नारे लगे। बता दें कि सरकार का विरोध करने वालों के लिए दक्षिणपंथी या इसके समर्थक कई मौक़ों पर इस नारे को लगा चुके हैं। जेएनयू में भी छात्रों और शिक्षकों पर हमले के दिन बाहर गेट पर इस नारे को लगाया गया था।
इसी नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ आईआईटी बॉम्बे के सैकड़ों छात्र भी उतरे थे। उन्होंने शहर के गेटवे ऑफ़ इंडिया पर प्रदर्शन किया था।
तब जेएनयू, एएमयू, बीएचयू, जामिया मिल्लिया इसलामिया सहित कई विश्वविद्यालयों के अधिकारियों ने पत्र लिखकर कहा था कि इसे हम देश के संस्थानों पर सिस्टमैटिक अटैक के तौर पर ही देखते हैं। उन्होंने कहा था कि संस्थान अपने सदस्यों को ही बचाने में नाकाम साबित हुए हैं। उन्होंने कहा था कि हमारा संविधान हमें बोलने की आज़ादी का अधिकार देता है। इसके बाद देश भर में एक के बाद एक कई विश्वविद्यालयों के छात्र प्रदर्शन के अधिकार के समर्थन में आए। हालाँकि इसके बाद भी स्थिति बेहतर नहीं हुई है, बल्कि बदतर ही हुई है। यह आईआईटी बॉम्बे के ताज़ा आदेश से भी पता चलता है और कर्नाटक के बीदर स्कूल विवाद से भी।
अपनी राय बतायें