यह लोकसभा चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति में काफी खास माना जा रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि शिवसेना और एनसीपी दोनों में ही बंटवारा हो चुका है। पूर्व की दोनों पार्टियां अब दो से बढ़कर चार हो चुकी हैं।
राज्य में अब मिलते-जुलते नाम वाली दो शिवसेना है और दो एनसीपी भी। इसमें से दो पुराने चुनाव चिन्ह्र तो दो नए चुनाव चिन्ह्र के साथ यह लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। इन सब के कारण महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव रोचक बनता दिख रहा है।
शिवसेना में बंटवारे के बाद पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह्र धनुष बाण महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे गुट और एनसीपी में बंटवारे के बाद पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह्र टेबल घड़ी अजीत पवार गुट को चुनाव आयोग ने पूर्व के समय में ही दे दिया था।
वहीं शिवसेना में उद्धव ठाकरे के गुट को नया नाम शिवसेना उद्धव बाला साहेब ठाकरे या शिवसेना यूबीटी और चुनाव चिन्ह्र जलती हुई मशाल चुनाव आयोग से मिली थी। जबकि एनसीपी में बंटवारे के बाद शरद पवार के गुट वाली पार्टी को नया नाम एनसीपी शरदचंद्र पवार और चुनाव चिन्ह्र तुरही बजाती आदमी मिला था।
शिवसेना यूबीटी और एनसीपी शरदचंद्र पवार अब इस नये चुनाव चिन्ह्र के साथ लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। इनके समक्ष इस चुनाव में उनके लिए एक बड़ी चुनौती जो दिख रही है वह आम मतदाताओं को अपने नए चुनाव चिन्ह्र के बारे में जागरूक करना भी है।
नये चुनाव चिन्ह्र को अपने समर्थक मतदाताओं के बीच प्रचारित करने के लिए ये दोनों ही पार्टियां इन दिनों खूब मेहनत करती दिख रही हैं।
नये चुनाव चिन्ह्र के बारे में मतदाताओं को जागरूक करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके बिना उनके समर्थक मतदाता भी सही बटन नहीं दबा पाएंगे।
अंग्रेजी अखबार द हिंदू की एक रिपोर्ट कहती है कि दो शिवसेना और दो एनसीपी को मिलाकर इन चार पार्टियों के चुनाव चिन्ह और महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्र में इनके बीच धड़कते द्वेष ने राजनीतिक पर्यवेक्षकों को इस लोकसभा चुनाव में राजनीतिक लामबंदी के सिद्धांतों पर वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया है।
इस लामबंदी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पार्टी का प्रतीक चिन्ह्र है, जो राजनीतिक दलों की आसान पहचान, उनकी विचारधारा, नेतृत्व और सामुदायिक आधार के लिए एक कोड प्रदान करता है।
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इसे प्रचारित करना अब मुश्किल नहीं
द हिंदू की रिपोर्ट में शिवसेना यूबीटी की कोल्हापुर में समन्वयक जयश्री बल्लीकर के हवाले से बताया गया है कि उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह्र में बदलाव का मतलब है कि अब नए चुनाव चिन्ह्र जलती हुई मशाल को प्रचारित करने के लिए घर-घर अभियान चलाया जाए। हालांकि अब हर किसी के पास स्मार्टफोन होने से इसे प्रचारित करना इतना मुश्किल नहीं है।वह कहती हैं कि हमारे नियमित डोर-टू-डोर अभियानों के हिस्से के रूप में हम लोगों को बता रहे हैं कि हमारे पास अब एक नया चुनाव चिन्ह्र है। नए चुनाव चिन्ह के प्रचार-प्रसार के लिए शिवसेना ने सोशल मीडिया पर एक बड़ा अभियान भी चलाया है।
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि खासकर मुंबई में ऐसी कई सीटें हैं, जहां दोनों शिवसेनाएं आमने-सामने हैं। शिवसेना (यूबीटी) के एक नेता ने कहा कि हमारे लिए बड़ी चुनौती नए मतदाताओं के बीच अपने नए चुनाव चिन्ह्र को लोकप्रिय बनाने की है, जो उम्मीदवारों के बारे में ज्यादा नहीं जानते होंगे।
वहीं एनसीपी (शरद पवार गुट) का नया चुनाव चिन्ह्र तुरही बजाता हुआ आदमी है। दोनों एनसीपी के बीच सबसे बड़ा मुकाबला बारामती में है, जहां शरद पवार की बेटी और मौजूदा सांसद सुप्रिया सुले अपनी भाभी और एनसीपी अजीत पवार गुट की उम्मीदवार सुनेत्रा पवार के खिलाफ चुनाव लड़ रही हैं।
एनसीपी शरदचंद्र पवार पार्टी के कार्यकर्ता धनंजय पाटिल के हवाले से बताया गया है कि बारामती पवार परिवार का गढ़ रहा है। यहां लोगों के बीच दोनों ही गुटों के प्रतीकों को लेकर काफी जगरूकता आम लोगों में देखी जा रही है।
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि भारत में चुनावी लोकतंत्र की शुरुआत से ही पार्टी के प्रतीकों या चिन्ह्रों को महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। इसका कारण यह है कि देश में स्वतंत्रता के बाद, चुनावों की जब शुरुआत हुई तब सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रावधान किया गया। इसके साथ ही बड़ी संख्या में अशिक्षित लोग मतदाता बने। ऐसे में इसका महत्व काफी बढ़ गया।
इस लोकसभा चुनाव में एनसीपी शरदचंद्र पवार और शिवसेना यूबीटी भले ही पहली बार नए चुनाव चिन्ह्र के साथ मैदान में हैं लेकिन सोशल मीडिया और स्मार्टफोन के इस दौर में उन्हें मतदाताओं तक अपने नए चुनाव चिन्ह्र का प्रचार करने में ज्यादा कठिनाई नहीं हो रही है।
हालाँकि, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) के पार्टी कार्यकर्ताओं को भरोसा है कि कम से कम विधानसभा चुनावों तक, उनके चिन्ह्र को उनके समर्थकों द्वारा पूरी तरह से आत्मसात कर लिया जाएगा।
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