महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने दलित नेता और पीपल्स रिपब्लिकन पार्टी यानी पीआरपी के अध्यक्ष जोगेंद्र कवाडे के साथ हाथ मिला लिया है। याद दिलाना होगा कि नवंबर में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी दलित नेता और बहुजन वंचित आघाडी के प्रमुख प्रकाश आंबेडकर के साथ गठबंधन किया था।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जोगेंद्र कवाडे बीजेपी और आरएसएस के कट्टर आलोचक रहे हैं। कवाडे पिछले साल अक्टूबर तक महा विकास आघाडी के साथ थे।
जोगेंद्र कवाडे अपनी पार्टी पीआरपी के जरिए दलितों के मुद्दों को उठाते रहे हैं। इससे पहले वह रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया में थे लेकिन बाद में उन्होंने अपना राजनीतिक दल बनाकर दलित समाज के मुद्दों पर संघर्ष शुरू किया।
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लेकिन सवाल यह है कि बीजेपी और संघ के आलोचक जोगेंद्र कवाडे का एकनाथ शिंदे गुट के साथ गठबंधन कितने दिन चल पाएगा क्योंकि महाराष्ट्र की बीजेपी-एकनाथ शिंदे सरकार में बीजेपी बड़े दल के रूप में है हालांकि उसने मुख्यमंत्री की कुर्सी एकनाथ शिंदे को सौंपी है।
जब उद्धव ठाकरे ने प्रकाश आंबेडकर के साथ गठबंधन किया था तो निश्चित रूप से एकनाथ शिंदे को भी किसी दलित नेता के साथ की जरूरत थी और उन्होंने जोगेंद्र कवाडे को अपने साथ ले लिया।
जोगेंद्र कवाडे ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि उन्होंने एकनाथ शिंदे के साथ गठबंधन इसलिए किया है कि वह वंचित लोगों को न्याय दिला सकें। निश्चित रूप से कवाडे के एकनाथ शिंदे के साथ आने से महाराष्ट्र की सियासत में एक नया समीकरण देखने को मिलेगा।
महाराष्ट्र में बहुत जल्द बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनाव होने वाले हैं और उसके बाद मई, 2024 में लोकसभा और नवंबर, 2024 के विधानसभा चुनाव भी ज्यादा दूर नहीं हैं।
ऐसे में उद्धव ठाकरे और प्रकाश आंबेडकर का गठबंधन और एकनाथ शिंदे और जोगेंद्र कवाडे का गठबंधन महाराष्ट्र की सियासत के लिए अहम है।
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बीजेपी और शिवसेना का एकनाथ शिंदे गुट हिंदुत्व की राजनीति करता है तो जोगेंद्र कवाडे सेक्युलर राजनीति करते हैं। बीजेपी के साथ केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले की आरपीआई का गठबंधन पहले से है।
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