मोदी सरकार पर लगातार हमलावर रहे एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे को ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने नोटिस दिया है। यह नोटिस आईएल ऐंड एफ़एस के कथित भुगतान डिफ़ॉल्ट से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले की जाँच के सिलसिले में है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी एमएनएस ने आरोप लगाया है कि एक बहुत पुराने मामले में राज ठाकरे को ईडी ने राजनीतिक प्रतिशोध के कारण नोटिस जारी किया है। हालाँकि बीजेपी ने कहा कि यदि उन्होंने कुछ ग़लत नहीं किया है तो उन्हें डरने की क्या ज़रूरत है। बीजेपी की प्रतिक्रिया आने के बाद भी एमएनएस के आरोपों से यह सवाल तो खड़ा होता ही है कि क्या यह राजनीतिक बदले की भावना से नोटिस जारी किया गया है?
रिपोर्टों में कहा गया है कि ईडी ने राज ठाकरे से ईडी के मुंबई कार्यालय में 22 अगस्त को पेश होने को कहा है। ईडी ने मामले में ठाकरे के साथ ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना के वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी के पुत्र उन्मेश जोशी को भी तलब किया है। आईएल ऐंड एफ़एस समूह के क़र्ज़ से उन्मेश जोशी द्वारा प्रवर्तित कंपनी कोहिनूर सीटीएनएल के शेयरों में निवेश के मामले में ईडी राज ठाकरे के जुड़े होने की जाँच कर रहा है। बता दें कि ठाकरे और उन्मेश जोशी ने कंसोर्टियम बनाने के बाद कुछ परिसंपत्तियों के लिए संयुक्त रूप से बोली लगाई थी, लेकिन बाद में मनसे प्रमुख इससे हट गए थे।
आईएल ऐंड एफ़एस ने कोहिनूर सीटीएनएल में 200 करोड़ रुपये से ज़्यादा निवेश किया था, जिसमें इसे काफ़ी नुक़सान हुआ। ईडी ने पिछले हफ़्ते एक विशेष अदालत में पहला आरोप पत्र भी दाखिल किया था। इस मामले में 570 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की गई है। इस साल फ़रवरी में मनी लॉन्ड्रिंग का एक मामला दर्ज किया गया था। दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज एफ़आईआर के आधार पर यह कार्रवाई की गई थी।
एमएनएस के आरोप, चुनाव से पहले नोटिस
क्या ईडी की यह कार्रवाई राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर की जा रही है? कम से कम एमएनएस का आरोप तो ऐसा ही है। एमएनएस के प्रवक्ता संदीप देशपांडे ने साफ़-साफ़ आरोप लगाया कि विधानसभा चुनाव के कारण यह कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा, ‘इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राज ठाकरे ने सनसनी फैला दी थी। इसका लोगों पर काफ़ी असर पड़ा था और अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह की चुनौती से बचने के लिए ईडी ने उन्हें नोटिस जारी किया है।’
देशपांडे ने इसके ख़िलाफ़ सड़क पर उतरने की धमकी दी है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार राज ठाकरे के ख़िलाफ़ पूर्वाग्रह से प्रेरित होकर कोई कार्रवाई करती है तो हम सड़क पर उतरेंगे। इस पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने चेताया है कि यदि एमएनएस अप्रिय घटना की वजह बनती है तो उसे इसके परिणाम भुगतने होंगे। बता दें कि बीजेपी और एमएनएस के बीच नोकझोंक चलती रही है और लड़ाई लोकसभा चुनाव के दौरान काफ़ी तेज़ हो गई थी।
मोदी पर हमलावर रहे हैं राज ठाकरे
लोकसभा चुनाव के दौरान राज ठाकरे ने मोदी के ख़िलाफ़ जमकर प्रचार किया था। उन्होंने 'प्रॉक्सी' यानी 'परोक्ष' प्रचार किया था। महाराष्ट्र नव निर्माण सेना चुनाव नहीं लड़ रही थी लेकिन राज ठाकरे ने कई सभाएँ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी प्रमुख अमित शाह के ख़िलाफ़ प्रदेश भर में प्रचार किया था। राज ठाकरे की इन सभाओं में युवाओं की भीड़ ख़ूब रही। इन सभाओं में वह नरेन्द्र मोदी के उन वीडियो को दिखा रहे थे जिसमें मोदी आतंकवाद, नोटबंदी, सैनिकों, देश की सुरक्षा, विकास आदि को लेकर पिछले लोकसभा चुनाव से पहले बोलते थे। इसके बाद राज ठाकरे मौजूदा स्थिति की तुलना कर मोदी की आलोचना करते थे।
सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी के उन भाषणों के क्लिप उन दिनों ख़ूब चल रहे थे लेकिन राज ठाकरे अपने भाषणों में जिस तरह से उनको प्रस्तुत कर रहे थे वे काफ़ी दिलचस्प थे। अपने इन भाषणों में राज ठाकरे किसी को वोट देने की अपील नहीं कर रहे थे, बस यह गुज़ारिश कर रहे थे कि वे नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भारत की राजनीति के फलक पर देखना नहीं चाहते, इसलिए इन दोनों नेताओं या इनकी पार्टी को मदद पहुँचाने वाले किसी नेता या पार्टी को मतदान नहीं करें। वह अपनी सभाओं में नरेंद्र मोदी के उस दावे की भी हँसी उड़ाते थे जिसमें मोदी कहते हैं कि कांग्रेस ने 70 साल में कुछ नहीं किया।
बीजेपी के नेतृत्व वाली मोदी सरकार में अलग-अलग पार्टियों के कई नेताओं के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों की ऐसी कार्रवाई पर राजनीतिक बदले की भावना से काम करने के आरोप लगते रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल के ख़िलाफ़ भी ऐसी ही कार्रवाई हुई है। प्रवर्तन निदेशालय ने समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ मनी लाॉन्ड्रिंग केस में कार्रवाई की है। उन्होंने भी राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाया। लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसी कार्रवाई में काफ़ी तेज़ी आई थी। तब मायावती, अखिलेश, ममता बनर्जी, रॉबर्ट वाड्रा के मामले में प्रियंका गाँधी, अरविंद केजरीवाल जैसे नेता भी राजनीतिक बदले की भावना से काम करने के ऐसे ही आरोप लगाए थे। हालाँकि चुनाव के बाद अधिकतर ऐसे मामले एक बार फिर से शांत हैं। तो राज ठाकरे के मामले में सच क्या है?
अपनी राय बतायें