सुशांत सिंह राजपूत मामले और कंगना रनौत प्रकरण में केंद्र सरकार की दख़ल के चलते क्या महाराष्ट्र और केंद्र सरकार में टकराव का नया दौर शुरू होने वाला है या यूँ कह लें कि अब ‘खुला खेल फर्रुखाबादी’ अंदाज़ में टकराव देखने को मिलेगा। प्रदेश में सत्ता गँवाने के बाद से ही केंद्र सरकार और बीजेपी के शिवसेना और महाराष्ट्र सरकार से टकराव के कई छोटे-मोटे वाकये हुए हैं। लेकिन जिस तरह से कंगना रनौत प्रकरण के ठीक अगले दिन ही राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार ने भीमा कोरेगाँव प्रकरण में केंद्र सरकार द्वारा एनआईए से कराई जा रही जाँच को लेकर समीक्षा बैठक बुलाई, चर्चाओं का नया दौर शुरू हो गया। इस बैठक के बाद पवार ने कहा कि जिस तरह से जाँच चल रही है उसको लेकर हम संतुष्ट नहीं हैं और कांग्रेस पार्टी भी नाराज़ है। कांग्रेस ने इस मामले की जाँच के लिए एसआईटी के गठन की माँग की है।
बता दें कि तीन दिन पहले ही इस मामले में एनआईए ने कबीर कला मंच से जुड़े हुए तीनों कार्यकर्ताओं ज्योति राघोबा जगताप, सागर गोरखे और रमेश गैचोर को यह बताकर गिरफ्तार किया कि ये नक्सल गतिविधियों और माओवादी विचारधारा का प्रचार कर रहे थे और भीमा कोरेगाँव में गिरफ्तार अन्य आरोपियों के साथ इस षड्यंत्र में बराबर के भागीदार भी थे। भीमा कोरेगाँव की वारदात 1 जनवरी 2018 की हुई है और इतने लम्बे अर्से बाद इस मामले में नए नाम जोड़े जाना नए कई सवाल खड़े करती है। इस मामले की जाँच को लेकर पहले भी शरद पवार ने कई सवाल खड़े किये थे और उन्होंने इस संबंध में गठित आयोग के समक्ष कुछ तथ्य पेश करने की भी बात कही थी।
जनवरी 2020 में गृह मंत्री अनिल देशमुख ने एसआईटी गठन की तैयारियाँ शुरू की थी और पुलिस अधिकारियों से उनकी बैठक जारी थी उसी समय केंद्रीय गृह मंत्रालय का फरमान जारी हो गया कि जाँच एनआईए को दी जाएगी। तब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी इस मामले में नरमी दिखाई थी।
लेकिन लगता है केंद्र सरकार से चल रहे टकरावों के बाद अब वे भी लड़ाई लड़ने को तैयार हो गए हैं। वैसे, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी द्वारा जीएसटी को लेकर बुलाई गयी ग़ैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी उद्धव ठाकरे ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया था। उन्होंने उस बैठक में बीजेपी के ख़िलाफ़ मज़बूत विकल्प तैयार करने की बात कही थी। भीमा कोरेगाँव प्रकरण की जाँच को लेकर शरद पवार ने जनवरी 2020 में राज्य सरकार को पत्र लिखा था।
अपने पत्र में शरद पवार ने आरोप लगाए थे कि पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सरकार ने भीमा कोरेगाँव का षड्यंत्र पुलिस अधिकारियों को दबाव में डालकर करवाया था। पवार ने यह भी कहा कि इसी भीमा कोरेगाँव प्रकरण से 'अर्बन नक्सल' जैसे शब्द की उत्पति की गयी और सामाजिक तथा मानवाधिकार के लिए कार्य करने वाले कुछ कार्यकर्ताओं का माओवादी संगठनों से सम्बन्ध बताकर उन्हें गिरफ्तार किया गया। शरद पवार के इस आरोप के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गयी थी।
राज्य सरकार एसआईटी जाँच के आदेश देती इससे पहले ही अचानक यह जाँच केंद्र सरकार ने एनआईए (NIA) को सौंप दी थी। केंद्र के इस निर्णय की प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कड़ी निंदा की थी और कहा था कि हमने इस प्रकरण की जाँच नए सिरे से करवाने का जब निर्णय कर लिया था, ऐसे में बिना राज्य सरकार से कोई अनुमति लिए केंद्र सरकार ने यह फ़ैसला क्यों कर लिया? उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार का यह निर्णय राज्य के संवैधानिक अधिकारों के ख़िलाफ़ है। अब एक बार फिर यह मामला शरद पवार ने ही उठाया है, लिहाज़ा फिर से नया विवाद तो निर्माण होना ही है।
बता दें कि 1 जनवरी, 2018 को पुणे के भीमा-कोरेगाँव में हिंसा हुई थी। दलित समुदाय के लोग 200 साल पहले हुई दलितों और मराठाओं के बीच हुई लड़ाई में दलितों की जीत का जश्न मनाने के लिए वहाँ हर साल इकट्ठा होते हैं। लेकिन 2018 की 1 जनवरी को वहाँ दंगा भड़क गया। पुलिस का आरोप था कि कार्यक्रम के एक दिन पूर्व जो एल्गार परिषद हुई उसके आयोजकों के नक्सलियों से संबंध थे और इस सम्बन्ध में एक दर्जन से ज़्यादा एक्टिविस्ट्स को गिरफ्तार किया गया है और सभी आरोपी ट्रायल का सामना कर रहे हैं।
इस मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा के खिलाफ 180 दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक आरोप पत्र दाखिल नहीं हुआ है। किसी भी आरोपी के ख़िलाफ़ आरोप पत्र दाखिल करने की अवधि 90 दिन की होती है। जाँच एजेंसियों ने विशेष कारण बताकर अदालत से नवलखा के मामले में 90 दिन का अतिरिक्त समय हासिल किया था लेकिन वह भी ख़त्म हो गया और आरोप पत्र दाखिल नहीं हुआ। इस पूरे प्रकरण और उसकी जाँच को लेकर कई सवाल उठे हैं। एक सवाल जो बार-बार उठाया गया है वह है राजनीतिक विद्वेष का। अब देखना है कि महाराष्ट्र सरकार इस मामले में एसआईटी गठित कर पाती है या केंद्र सरकार की तरफ़ से कोई नया दाँव आता है?
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