भीमा कोरेगाँव हाल के वर्षों में काफ़ी विवादों में रहा है। पहले हिंसा के लिए। और फिर सामाजिक कार्यकर्ता के पी. वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, गौतम नवलखा और वरनो गोन्जाल्विस के ख़िलाफ़ कार्रवाई और ‘अर्बन नक्सल’ की कहानी के लिए। ‘अर्बन नक्सल’ तक कहानी भी पहुँची भीमा कोरेगाँव में 2018 में हिंसा के बाद ही।
भीमा कोरेगाँव में किस बात का जश्न मनाते हैं दलित?
- महाराष्ट्र
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- 1 Jan, 2022
भीमा कोरेगाँव में ‘विजय स्तंभ’ के सामने दलित अपना सम्मान प्रकट करते हैं। माना जाता है कि दलित इसे छुआछूत के ख़िलाफ़ अपनी जीत के रूप में मनाते हैं।

दरअसल, मामला यह है कि हर साल जब 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं, वे वहाँ बनाए गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि 1818 में भीमा कोरेगाँव युद्ध में शामिल ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़ी टुकड़ी में ज़्यादातर महार समुदाय के लोग थे, जिन्हें अछूत माना जाता था। यह ‘विजय स्तम्भ’ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था जिसमें कंपनी के सैनिक मारे गए थे।