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संघ मुख्यालय में बुलावे पर क्यों नहीं गए अजित पवार?

क्या अजित पवार की राजनीतिक विचारधारा अभी भी बीजेपी-आरएसएस की विचारधारा से मेल नहीं खा रही है? भले ही वह बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में साझीदार हैं, लेकिन लगता है कि उन्होंने बीजेपी-आरएसएस की विचारधारा से एक दूरी बनाकर रखी है। ऐसा तब भी दिखा जब आरएसएस के मुख्यालय में महायुति के नेताओं को निमंत्रण था लेकिन इसमें अजित पवार नहीं शामिल हुए।

उपमुख्यमंत्री और एनसीपी के अध्यक्ष अजित पवार गुरुवार को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय नहीं गए, जहां सत्तारूढ़ गठबंधन के सभी विधायकों को भाजपा ने आमंत्रित किया था। एनसीपी से भी केवल एक विधायक - राजू कारेमोरे - मुख्यालय पहुंचे, जबकि भाजपा और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के सभी विधायक वहां मौजूद थे।

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पिछले साल भी अजित पवार आरएसएस मुख्यालय नहीं गए थे। तब वह अपने चाचा शरद पवार के खिलाफ बगावत करके एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में शामिल हुए थे।

बीजेपी के साथ गठबंधन में शामिल होने के बावजूद, अजित पवार लगातार दावा करते रहे हैं कि उन्होंने शिवाजी महाराज, फुले और आंबेडकर की विचारधारा को नहीं छोड़ा है। एनसीपी नेता ने यह भी कहा था कि उनकी पार्टी अपनी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा से समझौता नहीं करेगी।

अजित ने 'बँटेंगे तो कटेंगे' का किया था विरोध

एनसीपी नेता अजित पवार ने बीजेपी के आक्रामक नारे 'बँटेंगे तो कटेंगे' का विरोध किया था। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने इस नारे को उछाला था। दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ झारखंड और महाराष्ट्र की रैलियों में 'बंटेंगे तो कटेंगे' और 'एक रहेंगे तो नेक रहेंगे' का नारा दे रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी चुनावी रैलियों में 'एक रहेंगे सेफ रहेंगे' का नारा दिया था।

अजित पवार ने कहा था कि बँटेंगे तो कटेंगे का नारा उत्तर प्रदेश और झारखंड में चलता होगा, महाराष्ट्र में नहीं चलेगा। उन्होंने कहा था कि मैं इसका समर्थन नहीं करता, हमारा नारा है- सबका साथ सबका विकास।'

चुनाव के दौरान अजित पवार ने एक न्यूज़ चैनल से बातचीत में कहा था, 'महाराष्ट्र में बाहर के लोग आकर ऐसी बातें बोल जाते हैं। हम महायुति में एक साथ काम कर रहे हैं, लेकिन हमारी पार्टियों की विचारधारा अलग-अलग है। हो सकता है कि दूसरे राज्यों में यह सब चलता हो, लेकिन महाराष्ट्र में ये काम नहीं करता।'

तब अजित ने कहा था कि महाराष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति छत्रपति शिवाजी महाराज, राजर्षि शाहू महाराज और महात्मा फुले जैसी शख्सियतों से बनी है जो एकता और सामाजिक सद्भाव के लिए खड़े थे। उन्होंने कहा था कि आप महाराष्ट्र की तुलना दूसरे राज्यों से नहीं कर सकते हैं, महाराष्ट्र के लोगों को यह पसंद नहीं है।

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हालाँकि तब शिवसेना ने उस नारे का समर्थन किया था। संजय निरूपम ने कहा था, "योगी आदित्यनाथ कह रहे हैं कि अगर आप बिखर जाते हैं, तो कमजोर हो जाते हैं। अगर आप एकजुट रहते हैं, तो मजबूत रहते हैं। अजित दादा आज नहीं समझ रहे हैं, आगे समझ जाएंगे। 'बंटेंगे तो कटेंगे' ये लाइन बिल्कुल चलेगी। अजित दादा को समझना पड़ेगा।"

बहरहाल, अब भी अजित पवार अपनी विचारधारा पर कायम नज़र आते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस बार भी वह आरएसएस के मुख्यालय में नहीं गए। उनकी पार्टी के एक विधायक को छोड़कर बाक़ी कोई भी नहीं गया। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार संघ के मुख्यालय जाने वाले एनसीपी विधायक राजू कारेमोरे ने कहा, "हमें भाजपा ने मुख्यालय आने का निमंत्रण दिया था। मैं आज सुबह वहां गया था। मैं अपनी पार्टी के अन्य लोगों के बारे में नहीं जानता।"
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रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस की हिंदुत्व विचारधारा के बारे में पूछे जाने पर राजू करेमोरे ने कहा, 'मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं... हम भगवान और संतों की पूजा करने जाते हैं। इसी तरह मैं यहां आया हूं।'

एनसीपी के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि पार्टी ने न तो अपने विधायकों को जाने के लिए कहा है और न ही उन्हें जाने से रोका है। मंत्री ने कहा, 'भाजपा ने सत्तारूढ़ गठबंधन के सभी विधायकों को निमंत्रण भेजा था... जो जाना चाहते हैं, वे जाने के लिए स्वतंत्र हैं।'

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क़मर वहीद नक़वी
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