इलाहाबाद और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा लेने के बाद एमआईटी से पीएचडी करके वहीं अमेरिका में अकादमिक क्षेत्र में बुलंद मुकाम बनाने वाले एक प्रोफ़ेसर और मुंबई के कुछ बहुत ही विद्वान एवं सामाजिक रूप से जागरूक पत्रकारों के साथ चुनाव यात्रा एक बेहतरीन अनुभव है। हमारे साथियों की यात्रा का स्थाई भाव उत्तर प्रदेश की राजनीतिक विकास यात्रा को समझना है। देश के चोटी के पत्रकार कुमार केतकर और ब्राउन विश्वविद्यालय के विश्वविख्यात प्रोफ़ेसर आशुतोष वार्ष्णेय के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश की चुनाव यात्रा मुझे अब तक अभिभूत कर चुकी है। लोकसभा के चुनाव में जो जीतेगा वह सांसद बनेगा लेकिन लखनऊ से बनारस तक की हमारी यात्रा में हमारे साथी, कुमार केतकर सांसद हैं लेकिन पत्रकारिता के धर्म में अड़चन न आने पाए इसलिए वह अपने इस परिचय को पृष्ठभूमि में रख कर चल रहे हैं। कुमार केतकर हमारे साथ सड़क पर छप्पर में बनी चाय की दुकानों पर बैठकर जिस तरह से श्रोता भाव से सब कुछ सुनते रहते हैं, वह बहुत ही दिलचस्प है। जब अमेठी के रामनगर में संजय सिंह के महल के सामने झोपड़ी में चल रही चाय की दुकान में हम बैठे थे तो मुझे लगा कि अगर किसी अधिकारी को पता लग जाए कि टुटही कुर्सी पर बैठे यह श्रीमानजी संसद सदस्य हैं तो वह प्रोटोकॉल का पालन करने की कोशिश करेगा लेकिन कुमार को वह मंज़ूर नहीं।
दलितों को मंज़ूर नहीं आम्बेडकर से अलग राजनीतिक लाइन
- विचार
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- 8 May, 2019

दलितों के इंसानी हुकूक का सबसे बड़ा दस्तावेज़ भारत का संविधान है। उसके साथ हो रही छेड़छाड़ की कोशिशों से हमारे गाँव के दलित चौकन्ने हैं। उनको जाति के शिकंजे में लपेटना नामुमकिन है।