अमित शाह ने क्या अपने आप को भविष्य के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना शुरू कर दिया है? क्या वह अपने आप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखते हैं? क्या वह यह मानते हैं कि मोदी के बाद वह पार्टी के सर्वेसर्वा होंगे? वैसे तो ये सवाल काफी दिनों से ख़ुसफुस अंदाज में उठ रहे थे पर जब से वह राज्यसभा के सदस्य बने हैं, तभी से ये सवाल काफी तेज़ी से अटकलों में तब्दील हो गए। अब इन अटकलों को तेज़ी दी है गाँधीनगर से उनके चुनाव लड़ने की ख़बर ने।

अगर नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बनते हैं तो अमित शाह उनकी सरकार में प्रमुख भूमिका में आ सकते हैं। चुनाव लड़कर अमित शाह यह संदेश देना चाहते हैं कि वह राज्यसभा के पिछले दरवाज़े से संसद या कैबिनेट में नहीं आए हैं। जनता के बीच से चुनकर आए हैं। ऐसे में नंबर दो के लिए, नंबर एक के लिए पोजिशनिंग करने में क्या दिक़्क़त है?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।