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कैसे कांटे से कांटा निकालने की रणनीति में जुटे हैं हेमंत सोरेन

31 जनवरी की रात अपनी गिरफ्तारी और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा से पहले हेमंत सोरेन जब सत्ता की बागडोर सरकार के मंत्री चंपाई सोरेन के हाथों सौंपने का निर्णय दल के विधायकों को बता रहे थे, तब उन्हें इसका अहसास शायद नहीं रहा होगा कि कुछ महीनों बाद राजनीतिक परिस्थितियां तेजी से बदलेंगी और चंपाई सोरेन राह बदलते हुए बीजेपी का दामन थाम लेंगे। जाहिर तौर पर पिछले आठ महीनों से एक के बाद एक विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हेमंत सोरेन के सामने बीजेपी की घेराबंदी बढ़ी है। तब पूछा जा सकता है कि चुनौतियों से पार पाने के लिए हेमंत सोरेन कर क्या रहे हैं?

इन बनते- बिगड़ते समीकरणों और विधानसभा चुनाव के लिहाज से हेमंत सोरेन एक साथ दो मोर्चे संभाले दिखते हैं। पहला- राजकाज संभालते हुए सरकार को जनता के नजदीक पहुंचाने की कोशिश और दूसरा- कांटे से कांटा निकालने की रणनीति। 

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झारखंड में पांचवीं विधानसभा का कार्यकाल पांच जनवरी को पूरा हो रहा है। यहां नवंबर- दिसंबर में चुनाव संभावित है। बेशक, हेमंत सोरेन अपने दल समेत इंडिया गठबंधन के सबसे बड़े चेहरे में से एक हैं। और 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में सत्ता पर काबिज होने के बाद से भाजपा के लिए बड़ी चुनौती भी। 

2019 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी इलाक़ों में ज़मीन खोने और सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी सत्ता में वापसी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। दूसरी तरफ़ हेमंत सोरेन और उनका दल जेएमएम किसी हाल में सत्ता हाथ से निकलने नहीं देना चाहता। 

चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद 31 अगस्त को जेएमएम से बग़ावत करने वाले तथा संथालपरगना में बोरियो से पूर्व विधायक लोबिन हेंब्रम भी बीजेपी में शमिल हो गए हैं। जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन की बड़ी बहू और जामा की पूर्व विधायक सीता सोरेन लोकसभा चुनावों के दौरान ही बीजेपी में शामिल हुई थीं। अब इन तीनों सीटों पर जेएमएम के संभावित उम्मीदवारों पर सबकी निगाहें टिकी हैं। 

रामदास सोरेन को आगे करना

30 अगस्त को चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से कुछ घंटे पहले कोल्हान में घाटशिला से जेएमएम के विधायक रामदास सोरेन को मंत्रिमंडल में शामिल करना हेमंत सोरेन की रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है। एक मंत्री के तौर पर चंपाई सोरेन के पास जो पोर्टफोलियो थे, वही रामदास सोरेन को दिए गए हैं। 

दोनों संथाली आदिवासी नेता चंपाई सोरेन और रामदास सोरेन झारखंड अलग राज्य के लिए आंदोलनकारी होने के साथ शिबू सोरेन के विश्वासी माने जाते हैं। 
hemant soren strategy to counter bjp champai soren shift - Satya Hindi
जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन से आशीर्वाद लेते रामदास सोरेन (बायें से तीसरे)।

हालाँकि अब चंपाई सोरेन की राह और जेएमएम के साथ सोरेन परिवार के प्रति सोच बदल गए हैं। चंपाई सोरेन ने पहले ही कहा है कि तीन जुलाई को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद उन्होंने तय कर लिया था कि अब उनके राजनीतिक जीवन का नया अध्याय शुरू होगा।  

चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी के रणनीतिकारों की उम्मीदें जगी हैं कि कोल्हान में बीजेपी का सूखा दूर करने में चंपाई कारगर भूमिका निभा सकते हैं। कोल्हान में विधानसभा की 14 सीटें हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कोल्हान में सभी 14 सीटों पर हार गई थी। उधर, बीजेपी में ही आदिवासी चेहरा और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, पूर्व सांसद गीता कोड़ा भी कोल्हान क्षेत्र से आते हैं। लोकसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी में है। 

चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी को एक बड़ा आदिवासी चेहरा ज़रूर मिल गया है। लेकिन इससे समीकरणों में कितना उलटफेर होगा, इसे तौला जाना बाक़ी है। आदिवासी समुदाय चंपाई सोरेन के इस फैसले का खुलकर साथ देते हैं या नहीं, यह देखना महत्वपूर्ण है।

इससे पहले बीजेपी ने कांग्रेस की सांसद रहीं गीता कोड़ा को लोकसभा चुनाव में अपने पाले में किया था। हालांकि गीता कोड़ा को जेएमएम की जोबा माझी से हार का सामना करना पड़ा। हो समुदाय से आने वाले पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा और उनकी पत्नी गीता कोड़ा का कोल्हान में आदिवासियों के बीच खासा प्रभाव माना जाता रहा है। लेकिन हेमंत सोरेन की ग़ैर मौजूदगी में भी (लोकसभा चुनावों के दौरान हेमंत जेल में थे) जेएमएम के विधायकों ने ‘कोड़ा क़िला’ को गिरा दिया था। 

विधायकों को इंटैक्ट रखने के प्रयास

19 अगस्त को चंपाई सोरेन के दिल्ली पहुंचने और उनके बीजेपी के आला नेताओं के संपर्क में रहने की अटकलों के बीच नजाकत को भांपते हुए हेमंत सोरेन ने कोल्हान के विधायकों, सांसद तथा दल के प्रमुख नेताओं के साथ बैठकें और मंत्रणा शुरू कर दी थी। हेमंत सोरेन की सीधी नज़र इस बात पर है कि जेएमएम को किसी बड़े नुक़सान से बचाने के साथ ही बीजेपी को उसकी बिछाई बिसात पर कामयाब होने से रोका जाए।  

28 अगस्त को चंपाई सोरेन के गृह जिला सरायकेला में ‘मुख्यमंत्री मईंया सम्मान योजना’ को लेकर आयोजित कार्यक्रम में बड़ी संख्या में महिला लाभार्थियों के जुटान और जेएमएम-कांग्रेस के विधायक, सांसद, मंत्री और अन्य प्रमुख नेताओं की मौजूदगी को भी हेमंत सोरेन की एक रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
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चंपाई सोरेन के गृह जिला सरायकेला में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम में हेमंत सोरेन।

इसी महीने से शुरू हुई ‘मुख्यमंत्री मईंया योजना’ के तहत सरकार राज्य में 21 से 50 साल तक महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए दे रही है। इधर 30 अगस्त से सरकार ने पूरे राज्य में ‘आपकी योजना, आपकी सरकार, आपके द्वार’ कार्यक्रम शुरू किया है। 

हाल ही में हेमंत कैबिनेट ने किसी मिलिट्री ऑपरेशन के दौरान शहीद होने वाले राज्य के निवासी सैनिक अथवा अग्विनीर की पत्नी, आश्रित को 10 लाख रुपए के विशेष अनुग्रह अनुदान के साथ अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी देने का एक अहम निर्णय लिया है। हेमंत सोरेन इन दिनों अग्निवीर योजना को लेकर केंद्र सरकार की नीति की आलोचना भी करते रहे हैं। 

इसके अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण फ़ैसले के तहत 200 यूनिट से कम बिजली ख़पत करने वाले उपभोक्ताओं का बकाया बिजली बिल माफ़ कर दिया गया है। इसका लाभ राज्य के लगभग 40 लाख उपभोक्ताओं को मिलेगा, जिन पर 3584 करोड़ का बकाया है। 

हालाँकि इन योजनाओं और कार्यक्रमों को लेकर प्रमुख विपक्षी पार्टी कई मौक़े पर सरकार की आलोचना के साथ चुनावी पासा करार देती रही है। सरकारी नौकरी और रोजगार के सवाल पर भी सरकार को बीजेपी लगातार घेरती रही है।

इन सबके बावजूद हेमंत सोरेन पॉलिटिकल परसेप्शन और नैरेटिव अपने पक्ष में करते दिखाई पड़ते हैं। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद हेमंत सोरेन के पक्ष में समर्थन और सहानुभूति की जो हवा चली थी, उनके जेल से बाहर निकलने के बाद भी वह कायम दिखती है। दूसरी तरफ़ बीजेपी के द्वारा हेमंत सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की हवा बनाने की तमाम कोशिशें फिलहाल सिरे चढ़ती नहीं दिखाई पड़तीं।

संथालपरगना और कोल्हान का टसल

लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को सह प्रभारी बनाया है। दोनों नेता चुनावी बिसात बिछाने में तेजी से जुटे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, बीजेपी विधायक दल के नेता अमर कुमार बाउरी सरीखे नेता पहले से मोर्चा संभाल रहे हैं। उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह की भी नज़र झारखंड पर बनी है। बीजेपी में शामिल होने से पहले चंपाई सोरेन ने दिल्ली में अमित शाह से मुलाक़ात भी की थी। 

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झारखंड में बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठिये का मुद्दा उछाल रखा है। दूसरी तरफ़ हेमंत सोरेन और सत्तारूढ़ दलों के नेता कई मौके पर पलटवार करते रहे हैं कि बाहर से आने वाले नेता दूसरे दलों को तोड़ने और झारखंड में सामाजिक तानाबाना बिगाड़ने में लगे हैं। 

दरअसल, लोकसभा चुनावों में आदिवासियों के लिए रिजर्व सभी पांच सीटों पर बीजेपी की हार ने पार्टी के रणनीतिकारों को परेशान किया है। जबकि इन पांच सीटों में से तीन पर जेएमएम और दो पर कांग्रेस की जीत से इंडिया ब्लॉक को दम मिला है। लोकसभा चुनावों में ही ओवरऑल सभी 14 सीटों पर बीजेपी का वोट शेयर 2019 की तुलना में 51.6 प्रतिशत से नीचे गिरते हुए 44.60 प्रतिशत पर आया है। 

अब असली लड़ाई संथालपरगना और कोल्हान की उभरती दिख रही है। माना जाता है कि आदिवासी बहुल इन दोनों इलाक़े की 32 सीटें सत्ता तक पहुंचने का महत्वपूर्ण रास्ता है। जाहिर तौर पर बीजेपी कोल्हान और संथाल परगना में समीकरणों को साधने की कवायद में जुटी है। जबकि हेमंत सोरेन भी अपने वोट समीकरण और कैडर के भरोसे कोई दाँव चूकना नहीं चाहते।

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नीरज सिन्हा
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