नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस बात के ठोस संकेत दिए हैं कि वह जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में अकेले उतरेगी। इसे गुपकार गठबंधन के साथ ही महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली पीडीपी के लिए लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बुधवार को हुई एक बैठक में गुपकार गठबंधन में उसके साथ किए गए बर्ताव की निंदा की है और यह मांग की है कि गठबंधन के सहयोगियों को बड़े सुधार करने चाहिए।
जम्मू-कश्मीर की सियासत में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी एक दूसरे के राजनीतिक प्रतिद्वंदी रहे हैं लेकिन 2019 में धारा 370 के हटने के बाद बदली हुई परिस्थितियों में यह दल साथ आ गए थे और पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन यानी गुपकार गठबंधन का गठन किया था।
इसमें पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेन्स के अलावा जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स, आवामी नेशनल कॉन्फ्रेन्स और सीपीआईएम शामिल थे। लेकिन जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेन्स इस गठबंधन से अलग हो चुकी है।
जम्मू-कश्मीर में कुछ महीनों के अंदर विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं और वहां बाहरी लोगों को भी मतदाता सूची में शामिल किए जाने के फैसले को लेकर इन दिनों अच्छा खासा बवाल हो रहा है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा है कि उसकी जम्मू-कश्मीर इकाई ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया है कि पार्टी को जम्मू-कश्मीर की सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए।
पिछले महीने ही पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती और गुपकार गठबंधन के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने एलान किया था कि जम्मू-कश्मीर में जब भी विधानसभा चुनाव होंगे, वे मिलकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। इससे पहले इन दलों ने डीडीसी का चुनाव भी मिलकर लड़ा था।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के इस रुख पर महबूबा मुफ्ती ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि गुपकार गठबंधन का गठन बड़े मकसद के लिए किया गया था। साथ में चुनाव लड़ना इसका एक छोटा मकसद था। उन्होंने कहा, लोग चाहते हैं कि हम मिलकर चुनाव लड़ें लेकिन अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस ऐसा नहीं चाहती तो ठीक है।
नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने बयान में गुपकार गठबंधन के कुछ सहयोगियों पर बिना नाम लिए हमला बोला है। पार्टी ने कहा है कि गुपकार गठबंधन के कुछ सहयोगी अपने भाषणों में नेशनल कॉन्फ्रेंस को निशाना बना रहे हैं।
पार्टी नेताओं ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के द्वारा हाल ही में 1987 में हुए जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव को लेकर दिए गए बयान के बारे में यह बात कही गई है। महबूबा ने कहा था कि उस वक्त हुए चुनाव में शेख साहब चुनाव हार गए थे और लोगों ने चुनाव में भरोसा खो दिया था। तब चुनावों में धोखाधड़ी हुई थी और इसके बाद घाटी के लोग हथियार उठाने के लिए मजबूर हुए थे और हम आज भी इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। 1987 के चुनाव में फारूक़ अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने थे। शेख साहब से महबूबा का मतलब शेख अब्दुल्ला से था। शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के बड़े नेता थे।
बढ़ गई सीटें
बताना होगा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया के बाद विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ गई है। पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 थी और अब यह बढ़कर 90 हो चुकी है। ऐसा पहली बार हुआ है जब जम्मू-कश्मीर में 9 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई हैं।
अब तक जम्मू में 37 सीटें थीं जबकि कश्मीर में 46। लेकिन अब जम्मू में विधानसभा की 6 सीटें बढ़ेंगी जबकि कश्मीर में एक। इस तरह जम्मू में अब 43 सीटें हो जाएंगी जबकि कश्मीर में 47।
बंट जाएंगे विपक्षी वोट
अगर जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी को इससे कुछ फायदा हो सकता है क्योंकि ऐसा होने की सूरत में विपक्षी वोट बंट जाएंगे। जबकि कांग्रेस के अंदर उसके बड़े नेता गुलाम नबी आजाद के रुख के कारण घमासान मचा हुआ है। गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर की चुनाव प्रचार समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था।
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