जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने शुक्रवार को राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती की हिरासत की अवधि को 3 महीने और बढ़ा दिया है। राज्य से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद महबूबा मुफ़्ती, पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनके पिता फ़ारूक़ अब्दुल्ला को नज़रबंद कर दिया गया था। इस साल मार्च में उमर और फ़ारूक़ अब्दुल्ला को 7 महीने बाद रिहा किया गया था।
लेकिन महबूबा को नज़रबंद हुए लगभग एक साल हो गया है। पहले उन्हें एक सरकारी गेस्टहाउस में रखा गया और उसके बाद उनके घर पर शिफ़्ट कर दिया गया। ऐसे में सवाल यह है कि आख़िर उनकी रिहाई कब होगी। महबूबा मुख्यधारा की बड़ी नेता रही हैं। महबूबा के पिता मुफ़्ती मोहम्मद सईद राज्य के मुख्यमंत्री के अलावा केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे थे।
इन तीनों ही नेताओं पर मोदी सरकार ने पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) लगा दिया था। उमर और फ़ारूक़ को रिहा करने के बाद पीएसए हटा लिया था लेकिन महबूबा को किसी तरह की राहत नहीं दी गई थी।
पीएसए के तहत आतंकवादियों, अलगाववादियों और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाती रही है। यह पहली बार हुआ जब मुख्यधारा के राजनेताओं पर पीएसए लगाया गया।
‘पिंजड़े में बंद कश्मीरी’
महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिजा मुफ़्ती ने पिछले साल गृह मंत्री अमित शाह को एक चिट्ठी लिख कर कहा था कि जब पूरा देश आज़ादी का जश्न मना रहा था, तब कश्मीर के लोगों को जानवरों की तरह पिंजड़े में बंद कर दिया गया था और उनके तमाम मानवाधिकार छीन लिए गए थे।
इल्तिजा ने कहा था कि उन्हें किसी से बात नहीं करने दी जा रही है और सुरक्षा बलों ने उन्हें धमकी दी है कि उन्होंने मीडिया से बात की तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे।
मोदी सरकार ने बीते साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था और उसे दो हिस्सों में बांट दिया था।
‘चुनाव नहीं लड़ूंगा’
हाल ही में उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है, वह विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। उमर ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वह अनुच्छेद 370 और 35ए पर उतने व्यथित नहीं हैं जितने कि इस पूरे मामले में देश के दूसरे हिस्सों में राजनीतिक दलों और नेताओं के रवैये से हैं।
उमर ने कहा था कि जब वह मुश्किल में थे, उन्हें जेल हुई तो किसी ने आवाज़ नहीं उठाई, लेकिन यदि अब उन नेताओं के साथ ऐसा हुआ तो वह भी कभी एक शब्द भी नहीं बोलेंगे। उन्होंने इस दौरान अरविंद केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू का नाम भी लिया था।
क्या है पीएसए?
8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा क़ानून (पीएसए) अस्तित्व में आया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने इसे विधानसभा में पारित कराया था। इसके तहत 16 साल से अधिक की उम्र के किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार किया जा सकता है और बग़ैर मुक़दमा चलाए उसे दो साल तक जेल में रखा जा सकता है।
2018 में इसमें संशोधन किया गया, जिसके तहत यह प्रावधान जोड़ा गया कि जम्मू-कश्मीर से बाहर के भी किसी व्यक्ति को पीएसए के तहत गिरफ़्तार किया जा सकता है।
इस क़ानून के तहत कोई भी व्यक्ति यदि ऐसा कोई काम करता है, जिससे क़ानून व्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है तो उसे एक साल के लिए गिरफ़्तार किया जा सकता है।
और यदि कोई व्यक्ति ऐसा कुछ करता है जिससे राज्य की सुरक्षा पर कोई संकट खड़ा होता है तो उसे दो साल के लिए जेल में रखा जा सकता है। इस क़ानून में यह कहा गया है कि पीएसए के तहत गिरफ़्तारी का आदेश डिवीज़नल कमिश्नर या ज़िला मजिस्ट्रेट दे सकते हैं।
पीएसए के मुताबिक़, गिरफ़्तार करने वाले अधिकारी के लिए यह बताना ज़रूरी नहीं होगा कि वह किसी व्यक्ति को क्यों गिरफ़्तार कर रहा है।
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