जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग ने नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता डॉ. फ़ारूक़ अब्दुल्ला को जन सुरक्षा क़ानून के तहत 12 दिन के लिए हिरासत में लेने का आदेश जारी किया है। रिपोर्टों में कहा गया है कि हिरासत को तीन महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है। नया आदेश क्यों जारी किया गया जब उनको पहले से ही नज़रबंद किया गया था? क्या उनकी नज़रबंदी काफ़ी नहीं थी या वह नज़रबंद ही नहीं किए गए थे? हालाँकि डॉ. अब्दुल्ला की नज़रबंदी को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों में उनके नज़रबंद होने की ख़बरें आती रही हैं और ख़ुद अब्दुल्ला ने भी नज़रबंद किए जाने का दावा किया था। अब यदि उनकी नज़रबंदी नहीं की गई थी तो क्या यह संभव है कि घाटी के छोटे से लेकर बड़े नेताओं तक को नज़रबंद या गिरफ़्तार किया गया है तो डॉ. अब्दुल्ला को सरकार ने छोड़ दिया हो?
फ़ारूक़ अब्दुल्ला की नज़रबंदी का रहस्य क्या है?
- जम्मू-कश्मीर
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- 16 Sep, 2019
डॉ. फ़ारूक़ अब्दुल्ला को जन सुरक्षा क़ानून के तहत हिरासत में लेने का आदेश क्यों जारी जारी किया गया है जब वह पहले से ही कथित रूप से नज़रबंद थे?

जम्मू-कश्मीर के गृह विभाग का यह आदेश फ़ारूक़ अब्दुल्ला की नज़रबंदी को लेकर एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से ऐन पहले ही जारी किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस भी जारी किया है। सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले डॉ. अब्दुल्ला को हिरासत में लेने का आदेश क्यों जारी किया गया? क्या इन सवालों का जवाब सरकार दे रही है?