वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर एक बार फिर से विवाद खड़ा हो गया है। वाराणसी की एक अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि मस्जिद के अंदर सर्वे किया जाएगा। जबकि कुछ दिन पहले ही सर्वे की कार्रवाई के दौरान खासा हंगामा हुआ था।
क्या है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद, इसे जानना बेहद जरूरी है। चूंकि वापी का मतलब होता है कुआं इसलिए ज्ञानवापी का मतलब है ज्ञान का कुआं।
क्या है याचिका में?
पहले तो यह समझना जरूरी है कि ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में जो याचिका वाराणसी की एक अदालत में दायर की गई है और जिस पर सर्वे का फैसला आया है, उसमें ज्ञानवापी के मंदिर या मस्जिद होने का मुद्दा नहीं उठाया गया है। उस याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं को श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश हनुमान और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत दी जाए। याचिका में कहा गया है कि मसजिद की पश्चिमी दीवार पर श्रृंगार गौरी की छवि है।
याचिका में यह भी मांग की गई है कि मस्जिद के प्रबंधकों को पूजा, दर्शन, आरती करने में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से रोका जाए। यहां यह भी बताना जरूरी है कि 1991 तक यहां पर नियमित रूप से पूजा होती थी। लेकिन अब यहां साल में एक बार नवरात्रि के दिन ही पूजा का कार्यक्रम होता है।
दीन-ए-इलाही
ज्ञानवापी मस्जिद की जो चारदीवारी है वह काशी विश्वनाथ मंदिर से लगती है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो कहा जाता है कि इस मंदिर को कई बार तोड़ा गया और उसके बाद कई बार बनाया भी गया है। इतिहासकारों के मुताबिक 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने इस स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया था। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को अकबर ने दीन-ए-इलाही की धार्मिक व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए बनाया था।
दीन-ए-इलाही एक धार्मिक व्यवस्था थी जिसे अकबर ने 1582 ईस्वी में शुरू किया था।
दीन-ए-इलाही के तहत इस्लाम और हिंदू धर्म को मिलाकर एक समरूप धर्म बनाना था। ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन का काम देखने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी दीन-ए-इलाही की इस धार्मिक व्यवस्था की बात को स्वीकार करती है।
यह भी कहा जाता है कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों पर हिंदू मंदिरों के अवशेष देखे जा सकते हैं।
अदालत पहुंचा मामला
1991 में ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में स्थानीय पुजारियों ने वाराणसी की एक अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को गिरा दिया था और ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण उसके ही आदेश पर हुआ था।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने 2050 साल पहले कराया था। उन्होंने यह भी दावा किया था कि ज्ञानवापी परिसर में भगवान विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग मौजूद है।
याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि जिस जमीन पर ज्ञानवापी मस्जिद बनी है उसे हिंदुओं को दिया जाना चाहिए। उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर पूजा की अनुमति देने की भी मांग की थी।
वाराणसी की अदालत में से होता हुआ यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक गया और हाई कोर्ट ने 1993 में इस मामले पर स्टे लगा दिया।
इसके बाद साल 2019 के दिसंबर महीने में वाराणसी के एक वकील विनय शंकर रस्तोगी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई के द्वारा सर्वे कराए जाने की मांग की। अप्रैल, 2021 में दिल्ली की 5 महिलाओं - राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू और दो अन्य ने वाराणसी की एक अदालत में याचिका दायर कर श्रृंगार गौरी, गणेश, हनुमान नंदी आदि देवी-देवताओं की हर दिन पूजा की अनुमति देने की इजाजत मांगी।
26 अप्रैल, 2022 को वाराणसी की एक अदालत ने मस्जिद में सर्वे कराए जाने का आदेश दिया। इस तरह पिछले तीन दशक से यह मामला अदालत में चल रहा है।
पूजा स्थल अधिनियम 1991
हिंदू पक्ष का कहना है कि अंग्रेजों ने साल 1928 में यह जमीन हिंदुओं को सौंप दी थी। इस बारे में ज्ञानवापी मस्जिद की कमेटी ने पूजा स्थल अधिनियम 1991 का हवाला दिया है जिसके मुताबिक किसी भी पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त 1947 को जैसा था, वैसा ही रहेगा और उसे बदला नहीं जा सकता है। इससे अयोध्या मामले को बाहर रखा गया था और बाकी सभी मुद्दों पर इस तरह की क़ानूनी प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई थी।
लेकिन याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम ज्ञानवापी मस्जिद पर लागू नहीं होता है क्योंकि 17 वीं शताब्दी में मस्जिद के निर्माण के लिए काशी विश्वनाथ मंदिर को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया था।
इन सारे दावों-प्रतिदावों के बीच एक और बात जो दस्तावेजों में दर्ज है, वह यह कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण इंदौर की रानी अहिल्याबाई द्वारा 1735 के आसपास, औरंगजेब की मृत्यु के लगभग दो दशक बाद किया गया था।
काशी, मथुरा की तैयारी
यह साफ दिखाई देता है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवाद सुलझने के बाद काशी और मथुरा को लेकर अब अदालतों में लंबी लड़ाई लड़े जाने की तैयारी चल रही है। क्योंकि मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि विवाद के मामले में भी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत से 4 महीने के अंदर सभी अर्जियों का निस्तारण करने के लिए कहा है। बीजेपी नेताओं के बयान भी काशी और मथुरा के मामले में आ चुके हैं।
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