loader

क्या वोटर आईडी-आधार लिंकिंग आसान, सही वोटरों के नाम तो नहीं कटेंगे?

चुनाव आयोग ने मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने का फ़ैसला किया है। इस क़दम का मक़सद मतदाता सूची को सही करना और दोहरे मतदाताओं की समस्या से निपटना बताया जा रहा है। हालाँकि, इस योजना के सामने कानूनी अड़चनें भी हैं। चुनाव आयोग और गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय, आईटी मंत्रालय व यूआईडीएआई के अधिकारियों की बैठक में इस पर रणनीति बनाई गई। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह प्रक्रिया सचमुच मतदाता सूची को बेहतर कर पाएगी, या फिर यह विवादों को और बढ़ाएगी?

चुनाव आयोग का कहना है कि आधार लिंकिंग से मतदाता सूची में दोहरे मतदाताओं को हटाया जा सकेगा और मतदाताओं की पहचान को पुख्ता किया जा सकेगा। चुनाव आयोग का कहना है कि 2023 तक उसके पास 66 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने आधार की जानकारी स्वैच्छिक रूप से दे दी थी, लेकिन अभी तक इनका डेटाबेस लिंक नहीं हुआ। अब यूआईडीएआई के साथ मिलकर इसे लागू करने की योजना है। यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23(4), 23(5) और 23(6) के तहत होगी, जो मतदाता पहचान सत्यापन के लिए आधार मांगने का अधिकार देती है। कहा जा रहा है कि इसके साथ ही, इसका प्रावधान भी है कि आधार न देने पर किसी को मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।

ताज़ा ख़बरें

हालाँकि यह क़दम स्वैच्छिक बताया जा रहा है, लेकिन इसकी राह आसान नहीं है। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आधार के इस्तेमाल को कल्याणकारी योजनाओं और पैन लिंकिंग तक सीमित कर दिया था। इसके बाद ईसीआई को अपना नेशनल इलेक्टोरल रोल प्यूरीफिकेशन एंड ऑथेंटिकेशन प्रोग्राम यानी एनईआरपीएपी को रोकना पड़ा था। इस दौरान आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में क़रीब 30 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हट गए थे, जिसे लेकर कोर्ट में चुनौती दी गई। 2021 में चुनाव कानून (संशोधन) अधिनियम पारित होने के बाद आधार लिंकिंग को फिर से मंजूरी मिली, लेकिन विपक्ष और विशेषज्ञ इसे गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में कहा गया कि यह मतदान के मौलिक अधिकार को प्रभावित कर सकता है, खासकर अगर कोई आधार न होने के कारण वोट से वंचित हो।

आधार की जानकारी लिए जाने वाले फॉर्म 6बी में भी साफ़ नहीं है। अभी तक इसमें आधार न देने का स्पष्ट विकल्प नहीं था, जिसे अब संशोधित करने की बात है। लेकिन न देने पर कारण बताना अनिवार्य होगा, जिसे लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह वास्तव में स्वैच्छिक है?

इसके अलावा, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और आधार अधिनियम, 2016 में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो वोटिंग अधिकारों को आधार से जोड़ने की अनिवार्यता को वैध ठहराता हो। कई संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि इस लिंकिंग से मतदाताओं का नाम लिस्ट से हटाने का जोखिम बढ़ सकता है, क्योंकि आधार में अक्सर डेटा मिक्सअप और बायोमेट्रिक फेल्योर की समस्या देखी गई है।
सम्बंधित खबरें

विपक्षी दलों का रुख

चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में सुधार के लिए यह क़दम तब उठाया है जब हाल के दिनों में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया है। टीएमसी ने हाल ही में डुप्लिकेट वोटर कार्ड नंबर का मुद्दा उठाया था, जिसमें अलग-अलग राज्यों में एक ही नंबर कई मतदाताओं को जारी होने का दावा किया गया। पार्टी ने इसे बीजेपी के पक्ष में मतदाता सूची में हेरफेर का सबूत बताया। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने कहा था, 'चुनाव आयोग भाजपा के साथ मिलकर मतदाता सूची को प्रभावित कर रहा है।' कांग्रेस भी मतदाता सूची में संदिग्ध एंट्री की शिकायत करती रही है। 

जब हाल के दिनों में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में सुधार की बात कही तो कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि मतदाता सूची में गड़बड़ी को स्वीकार करते हुए ईसीआई का आधार से सुधार करने का प्रयास स्वागत योग्य है, लेकिन इसे सभी दलों से सलाह-मशविरे के बाद करना चाहिए।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि मतदाता सूची को साफ़-सुथरा करने के नाम पर किसी का वोटिंग अधिकार नहीं छीना जाना चाहिए। पार्टी ने मांग की कि यह सुनिश्चित हो कि आधार न देने पर कोई मतदाता प्रभावित न हो।

ईसीआई ने सफाई दी कि आधार लिंकिंग पूरी तरह स्वैच्छिक होगी और कोई भी इसके अभाव में मतदान से वंचित नहीं होगा। आयोग ने डुप्लिकेट नंबर की समस्या को 'पुरानी गड़बड़ी' क़रार देते हुए कहा कि इसे तीन महीने में ठीक कर लिया जाएगा। उसका तर्क है कि एक ही नंबर होने से फर्जी मतदाता नहीं बनते, क्योंकि नाम, पता और मतदान केंद्र जैसी अन्य जानकारियाँ अलग होती हैं।

देश से और ख़बरें

यह क़दम मतदाता सूची की विश्वसनीयता बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास हो सकता है, लेकिन इसके पीछे कई चुनौतियां हैं। 

  • पहली, कानूनी रूप से सुप्रीम कोर्ट की पुरानी रोक और गोपनीयता का सवाल इसे विवादास्पद बनाते हैं। 
  • दूसरी, तकनीकी स्तर पर आधार में भी डुप्लीकेट प्रविष्टियों की रिपोर्ट रही है, तो यह कितना प्रभावी होगा?
  • तीसरी, विपक्ष का आरोप है कि यह राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल हो सकता है।
  • चौथी, यदि आधार डिटेल्स गलत अपडेट हैं या लिंकिंग में तकनीकी खामियां आती हैं, तो कई लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हट सकता है।

ईसीआई के लिए ज़रूरी है कि वह पारदर्शिता बनाए रखे और सभी दलों का भरोसा जीते। अगर यह प्रक्रिया निष्पक्ष और स्वैच्छिक नहीं रही, तो यह मतदाताओं के अधिकारों पर सवाल उठा सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले फॉर्म 6बी में संशोधन और तकनीकी परामर्श शुरू होने की संभावना है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह कानूनी और नैतिक चुनौतियों से कैसे निपटता है।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें