भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और लंबे समय से लोकतांत्रिक आदर्शों का प्रतीक रहा है। वह राजनीतिक स्वतंत्रता, अधिकारों और भागीदारी के अवसरों का एक मजबूत ढांचा प्रदान करता था। लेकिन हाल के वर्षों में भारतीय लोकतंत्र का संकुचन होते होते उस स्थिति में पहुँच गया है जिसे "चुनावी लोकतंत्र" कहा जाता है। इस प्रकार के लोकतंत्र में, चुनावों पर जोर दिया जाता है, जबकि लोकतांत्रिक शासन की मौलिक बातें जैसे चेक एंड बैलेंस, जवाबदेही, पारदर्शिता और मौलिक अधिकारों की रक्षा पीछे छूट जाती हैं।
V-Dem (Varieties of Democracy) संस्थान की हालिया रिपोर्ट ने भारत के लोकतांत्रिक गिरावट के बढ़ते रुझान पर रोशनी डाली है, खासकर इसके चुनावी लोकतंत्र में परिवर्तन के संदर्भ में। इस रिपोर्ट के अनुसार लोकतंत्र के सूचकांक में भारत फिसलकर 104 वें स्थान पर पहुँच गया है। भारत 2018 में ही उदार लोकतंत्र की श्रेणी से गिरकर चुनावी लोकतंत्र की श्रेणी में आ गया था। लेकिन अब ख़तरनाक़ बात ये है कि लोकतंत्र को मापने के जितने भी पैमाने हैं उनमें भारी गिरावट आ रही है और तानाशाही या निरंकुशतावाद बढ़ता जा रहा है।