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'आप-कांग्रेस ने एक-दूसरे को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी':शिवसेना यूबीटी

उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने कहा कि दिल्ली में बीजेपी की जबरदस्त जीत के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच की दरार जिम्मेदार है। इस संबंध में शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र 'सामना' के संपादकीय में सवाल किया गया है कि विपक्षी गठबंधन की जरूरत क्यों है, जब उनके घटक बीजेपी के खिलाफ लड़ने के बजाय एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं।

दिल्ली में बीजेपी को 70 सीटो में से 48 सीटें मिली हैं। इस नतीजे ने केजरीवाल की पार्टी को राजधानी की सत्ता से बाहर कर दिया। आम आदमी पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा और उसे सिर्फ 22 सीटें मिलीं। इस बीच, कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन जारी है और उसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में लगातार तीसरी बार कोई सीट नहीं मिली।

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सामना के संपादकीय में कहा गया है, ''दिल्ली में आप और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे को खत्म करने के लिए लड़ाई लड़ी, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के लिए चीजें आसान हो गईं। अगर यही चलता रहा तो फिर गठबंधन ही क्यों करें? बस जी भर कर लड़ो!” दिल्ली चुनाव के प्रचार के दौरान आप और कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर कई आरोप लगाए थे।

दिल्ली में कम से 13 सीटें ऐसी हैं, जहां आप सिर्फ कांग्रेस की वजह से हारी है। इन सीटों पर कांग्रेस ने आप के वोट काटे। आप की इज्जत कुछ मुस्लिम मतदाता बहुल सीटों पर बच सकी। जहां उन्होंने आप को जिताया। ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की वजह से भी आप को एक सीट खोना पड़ी। हालांकि नुकसान कांग्रेस का भी हुआ। उसके वोट मुस्तफाबाद और ओखला में बंट गये।
सामना के संपादकीय में कहा गया कि विपक्षी दलों के बीच इसी तरह के झटके महाराष्ट्र में भी निराशा लेकर आए, जहां भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 2024 के राज्य विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की। अखबार ने कहा कि अगर विपक्षी दल दिल्ली चुनाव नतीजों से सीखने में नाकाम रहे, तो यह सिर्फ मोदी और शाह के तहत "तानाशाही शासन" को मजबूत करेगा। बता दें कि इससे पहले जम्मू कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्लाह ने भी इसी तरह का हमला चुनाव नतीजे वाले दिन 8 फरवरी को किया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता ने एक्स पर लिखा था, "और लड़ो आपस में!"

संपादकीय में दावा किया गया कि पिछले साल हरियाणा में विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी, जिसमें भी भाजपा ने जीत हासिल की थी। इसमें पूछा गया कि क्या कांग्रेस के भीतर के आंतरिक तत्वों ने जानबूझकर राहुल गांधी के नेतृत्व को कमजोर किया है।
'सामना' ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ टिप्पणी के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे की भी आलोचना की। अन्ना हजारे के अपने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने एक बार राजनीति में आप प्रमुख के उभरने का रास्ता साफ किया था। हजारे ने पिछले महीने दिल्ली के मतदाताओं से साफ चरित्र और विचारों वाले लोगों को चुनने का आग्रह किया था, जो देश के लिए बलिदान दे सकते हैं।

सामना ने लिखा- ''अन्ना हजारे मोदी सरकार के कथित भ्रष्टाचार पर चुप रहे, जिसमें राफेल सौदे और अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट के विवाद भी शामिल हैं। मोदी का तथाकथित अमृतकाल केवल धोखे और भ्रष्टाचार पर आधारित है। उन्होंने सभी संदिग्ध लोगों को एक साथ इकट्ठा किया है और महाराष्ट्र के साथ-साथ देश में भी शो चला रहे हैं।''
अखबार ने लिखा है- दिल्ली चुनाव में हार का सीधा असर देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर पड़ेगा। महाराष्ट्र में भी, स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने सीट-बंटवारे की बातचीत को अंत तक खींच लिया था, और यह एक अराजक तस्वीर पेश कर रही थी। महाराष्ट्र और दिल्ली में विपक्षी दलों के बीच फूट से सीधे तौर पर बीजेपी को मदद मिली।

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सामना ने अंत में तंज कसते हुए लिखा है- "अगर चीजें इसी तरह से चलती रहेंगी, तो गठबंधन बनाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। बस आपस में लड़ते रहो! अगर दिल्ली विधानसभा चुनाव से कोई सबक नहीं सीखा जाता है, तो ऐसे लोग तानाशाह लोगों को सत्ता हासिल करने में मदद करने का श्रेय तो कमा ही सकते हैं। ऐसे नेक काम करने के लिए गंगा नदी में डुबकी लगाने की भी जरूरत नहीं होगी।"

(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)
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क़मर वहीद नक़वी
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