सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 पर सुनवाई में जम्मू कश्मीर के राजनीति विज्ञान के लेक्चरर के शामिल होने और उस पर सवाल करने के बाद उनको निलंबित किए जाने का मामला सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट के सामने जब यह मामला उठा तो इसने सोमवार को केंद्र के शीर्ष कानून अधिकारी को निर्देश दिया कि वह जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से बात करें। अदालत ने उन्हें यह पता लगाने का निर्देश दिया कि केंद्र शासित प्रदेश के शिक्षा विभाग के एक लेक्चरर को अनुच्छेद 370 को खत्म करने के खिलाफ बहस करने के लिए अदालत में पेश होने के कुछ दिनों बाद निलंबित क्यों किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने यह जानना चाहा कि क्या निलंबन व्याख्याता की अदालत के समक्ष उपस्थिति से जुड़ा था। इसने संकेत दिया कि यदि ऐसा होता है तो इसे प्रतिशोध के रूप में देखा जा सकता है।
यह मामला श्रीनगर के एक सरकारी स्कूल में वरिष्ठ राजनीति विज्ञान व्याख्याता जहूर अहमद भट के निलंबन से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से उनके निलंबन पर गौर करने को कहा।
बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इसी दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भट के निलंबन का मुद्दा उठाया। भट एक वकील के रूप में 23 अगस्त को मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे।
सिब्बल ने पीठ को बताया कि भट को सुप्रीम कोर्ट में पेश होने के एक दिन बाद निलंबित कर दिया गया था। इस पर एसजी मेहता ने कहा कि 'अखबार में जो बताया गया है वह पूरा सच नहीं हो सकता है।' इस पर सिब्बल ने कहा, 'यह सिर्फ अखबार से नहीं है। 25 अगस्त का ऑर्डर मेरे पास है।'
मेहता ने बताया कि 'अन्य मुद्दे भी हैं। वह विभिन्न अदालतों में पेश होते हैं।' उन्होंने कहा कि वह सारी जानकारी कोर्ट के सामने रखेंगे। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस पर सिब्बल ने कहा, 'तो फिर उन्हें पहले ही निलंबित कर देना चाहिए था। अब क्यों? यह उचित नहीं है। हमारे लोकतंत्र को इस तरह से काम नहीं करना चाहिए।'
सीजेआई ने तब अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, 'देखिए क्या हुआ है। जो कोई भी इस अदालत में पेश होता है उसे निलंबित कर दिया जाता है। इस पर एक नजर डालें। बस उपराज्यपाल से बात करें।'
उन्होंने कहा, 'अगर कुछ और है, तो वह अलग है। लेकिन उनके सामने आने और फिर निलंबित होने का इतना करीबी सिलसिला क्यों?' एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि निलंबन अन्य मुद्दों से संबंधित था, लेकिन न्यायमूर्ति एसके कौल द्वारा समय की ओर इशारा करने के बाद उन्होंने स्वीकार किया कि यह निश्चित रूप से उचित नहीं था।
हालाँकि, इस पर सिब्बल ने कहा कि भट के निलंबन का आदेश पहले ही दिया जाना चाहिए था। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सरकारी कार्रवाई प्रतिशोध हो सकती है। उन्होंने कहा, 'फिर इतनी आज़ादी का क्या होगा... अगर यह यहां पेशी के कारण हुआ है तो यह वास्तव में प्रतिशोध है।'
भट खुद उपस्थित हुए और पाँच मिनट तक बहस की। उन्होंने अदालत को बताया कि जम्मू-कश्मीर में छात्रों को भारतीय राजनीति पढ़ाना अगस्त 2019 के बाद से और अधिक कठिन हो गया है जब केंद्र ने अनुच्छेद 370 को रद्द किया, क्योंकि छात्र उनसे पूछते हैं, 'क्या हम अभी भी एक लोकतंत्र हैं?'
भट ने तर्क दिया था कि जम्मू-कश्मीर ने विशेष दर्जा खो दिया है और 'भारतीय संविधान की नैतिकता का उल्लंघन करते हुए इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया है। यह कदम सहयोगात्मक संघवाद और संविधान की सर्वोच्चता के खिलाफ था।'
अपनी राय बतायें