चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
जीत
चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
जीत
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
जीत
सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फ़ैसले में कहा है कि पिछड़ी जातियों के आरक्षण के मामले में 'क्रीमी लेयर' की पहचान के लिए आर्थिक आधार एक मात्र कारण नहीं हो सकता है।
इस फ़ैसले के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं और इससे आरक्षण और उस पर चलने वाली राजनीति प्रभावित हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार के एक नोटिफ़िकेशन को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है और उससे कहा है कि वह तीन महीने के अंदर नया नोटिस जारी करे।
“
हरियाणा सरकार ने पिछड़े वर्गों में 'क्रीमी लेयर' की पहचान सिर्फ आर्थिक आधार पर तय करने की बात कही है और ऐसा कर उसने गंभीर ग़लती की है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अंश
हरियाणा सरकार ने 2016 में एक नोटिस जारी कर 'क्रीमी लेयर' की पहचान का आधार तय किया।
इसके तहत यह तय किया गया कि पिछड़े वर्ग के जिन लोगों की सालाना आय छह लाख रुपए से ज़्यादा होगी, उन्हें 'क्रीमी लेयर' में माना जाएगा।
लेकिन पिछड़ा वर्ग कल्याण महासभा हरियाणा ने इस नोटिस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
महासभा ने याचिका में कहा कि नियम के अनुसार, 'क्रीमी लेयर' की पहचान करने के लिए सामाजिक, आर्थिक और दूसरे कारकों का भी ध्यान रखना चाहिए। उसने कहा कि नए नियम में इसका ध्यान नहीं रखा गया है, इसलिए नोटिस अवैध है।
अदालत ने इंदिरा साहनी मामले का हवाला देते हुए कहा कि जो लोग आईएएस, आईपीएस और दूसरे अखिल भारतीय सेवाओं में ऊँचे पद पर हैं, वे सामाजिक विकास और आर्थिक प्रगति के एक स्तर तक पहुँच चुके हैं और इसलिए उन्हें पिछड़े वर्ग के रूप में नहीं चिह्नित किया जाना चाहिए।
दिल्ली की वकील इंदिरा साहनी की याचिका पर सुनवाई करने के बाद जस्टिस बी. पी. जीवनरेड्डी की अगुआई में बनी नौ जजों की बेंच ने 1992 में यह फ़ैसला दिया था।
इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार व अन्य मामले में बेंच के 6-3 के फ़ैसले में सामाजिक व आर्थिक पिछड़े वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया था।
बेंच ने आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण को खारिज कर दिया था। इसने कहा था कि पिछड़े वर्ग की पहचान सिर्फ आर्थिक आधार नहीं की जा सकती है।
बेंच ने कहा था कि पिछड़ेपन की एक वजह आर्थिक भी हो सकती है, पर यह एकमात्र वजह नहीं हो सकती है।
अदालत ने यह भी कहा था कि जब तक किसी राज्य की ख़ास परिस्थितयाँ वैसी न हों, आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है।
इस फ़ैसले में संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला दिया गया है जिसमें यह कहा गया है कि सरकारी नौकरियों में समान अवसर सबको मिलना चाहिए।
अनुच्छेद 14 के सेक्शन चार में कहा गया है, "इस अनुच्छेद का कोई प्रावधान सरकार को किसी पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने से नहीं रोक सकता, जिसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा हो।"
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें