ऐसे समय जब 18 की उम्र से ऊपर के सभी लोगों के टीकाकरण के कार्यक्रम में अड़चनें आ रही हैं और केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वे खुले बाज़ार से ख़ुद टीके खरीदें, सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में केंद्र सरकार से कहा है कि वह अपनी कोरोना टीका खरीद नीति पर फिर से विचार करे।
अदालत ने कहा कि संवधान के अनुच्छेद 21 में निहित स्वास्थ्य के अधिकार का यह उल्लंघन है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि वे लॉकडाउन लागू करने पर विचार करें।
क्या कहा अदालत ने?
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एस. रवींद्र भट के खंडपीठ ने रविवार को यह टिप्पणी की है। केंद्र सरकार ने इसके पहले 20 अप्रैल को अपनी नई टीका खरीद नीति का एलान करते हुए कहा कि वह वैक्सीन उत्पादक कंपनियों से उनके उत्पादन का आधार टीका खरीदे, आधा टीका कंपनियाँ राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र को बेचे।
बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से कहा कि वे 18 साल की उम्र के सभी लोगों को कोरोना टीका दें और इसके लिए उत्पादक कंपनियों से खुद टीके खरीदें। इस तरह केंद्र ने टीका खरीदने की ज़िम्मेदारी राज्यों पर डाल दी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने यह भी एलान किया कि केंद्र जो टीके राज्यों को देगा, वह मुफ़्त होगा।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा है कि केंद्र सकार को यह चाहिए कि वह कोरोना वैक्सीन उत्पादक कंपनियों से टीके की कीमत तय करे, उनसे वह खुद टीके खरीदे और राज्य सरकारों टीके मुफ़्त दे।
राज्य सरकारों को कोटा तय कर उन्हें कोरोना वैक्सीन दे दिया जाए और राज्य उसके बाद तय करे कि वह कैसे सबका टीकाकरण करते हैं।
'कीमत केंद्र तय करे'
अदालत ने यह भी कहा कि कोरोना की कीमत तय करने का काम राज्यों पर डालने से प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और टीका बनाने वाली कंपनियों के लिए यह आकर्षक ज़रूर होगा, लेकिन 18 से 44 साल की उम्र के लोगों को टीका देने के कार्यक्रम पर इससे बुरा असर पड़ेगा। बेंच ने कहा कि इस उम्र वर्ग में ग़रीब व हाशिए पर खड़े वे बहुजन भी शामिल हैं जो टीके की कीमत अदा नहीं कर सकते।सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केंद्र व राज्य सरकारें अगले छह महीने तक अपने पास कोरोना टीका की उपलब्धता के बारे में पूरी जानकारी दें और 18 से 44 साल की उम्र के लगभग 59 करोड़ लोगों को वे कैसे टीका देती हैं, इसकी पूरी टाइमलाइन दें।
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