परिसीमन पर दक्षिणी राज्यों में हलचल क्या उनके राजनीतिक एजेंडे की वजह से है या यह उनकी वास्तविक चिंता है? कम से कम आरएसएस का तो आरोप ऐसा ही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयुक्त महासचिव अरुण कुमार ने शनिवार को परिसीमन की प्रक्रिया पर चर्चा कर रहे नेताओं से सवाल किया कि क्या उनका मक़सद कोई राजनीतिक एजेंडा है या वे वास्तव में अपने क्षेत्र के हितों के बारे में सोच रहे हैं। यह बयान तब आया जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन की मेजबानी में दक्षिणी राज्यों के कुछ नेता चेन्नई में परिसीमन के प्रभाव और उसका मुकाबला करने की रणनीतियों पर विचार-मंथन के लिए जुटे थे। अरुण कुमार ने इन चर्चाओं से बचने की सलाह दी, क्योंकि केंद्र सरकार ने अभी तक इस प्रक्रिया को शुरू नहीं किया है।
बेंगलुरु में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक के दौरान एक प्रेस वार्ता में अरुण कुमार ने मीडिया से भी कहा, 'आप उनसे (स्टालिन और अन्य) पूछें कि क्या परिसीमन की प्रक्रिया वाकई शुरू हुई है।' उन्होंने जोर देकर कहा कि परिसीमन पर चर्चा तब होनी चाहिए जब यह प्रक्रिया शुरू हो और इसके लिए एक विधेयक तैयार हो। उन्होंने तर्क दिया, 'न तो जनगणना शुरू हुई है, न ही परिसीमन पर चर्चा केंद्र ने शुरू की है। अभी तक कोई विधेयक भी तैयार नहीं हुआ है।' उनका कहना था कि यह एक संवैधानिक प्रक्रिया है, जो भारत में लोकतांत्रिक ढांचे के तहत चुनावों के लिए होती है और इसके लिए कानून बनाया जाता है।
अरुण कुमार ने परिसीमन के इतिहास का जिक्र करते हुए बताया कि 1972 में यह प्रक्रिया हुई थी और फिर 2002 में एक विधेयक के जरिए इसे लागू किया गया। 2002 में संसदीय सीटों को फ्रीज कर दिया गया था और तब यह मामला बंद हो गया था। उनका कहना है कि परिसीमन का मुद्दा तभी उठेगा जब नया विधेयक तैयार होगा और केंद्र सरकार इस प्रक्रिया के लिए खुलापन दिखाएगी।

'25 साल के लिए परिसीमन रोका जाए'
स्टालिन की अगुवाई में संयुक्त कार्रवाई समिति ने शनिवार को चेन्नई में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें किसी भी ऐसे परिसीमन अभ्यास का विरोध किया गया, जिसमें पारदर्शिता का अभाव हो और जिसमें प्रमुख हितधारकों को शामिल न किया गया हो। इसने कहा है कि 1971 की जनगणना के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों पर रोक का उद्देश्य उन राज्यों की रक्षा और प्रोत्साहन करना था जिन्होंने जनसंख्या वृद्धि को स्थिर करने के लिए प्रभावी कदम उठाए थे।
स्टालिन की अगुआई वाली समिति ने कहा कि चूंकि राष्ट्रीय जनसंख्या स्थिरीकरण लक्ष्य अभी तक हासिल नहीं हुआ है, इसलिए प्रस्ताव में इस रोक को और 25 साल तक बढ़ाने का आह्वान किया गया।
बहरहाल, अरुण कुमार का बयान बीजेपी और आरएसएस के उस रुख को दिखाता है, जिसमें परिसीमन को अभी तक शुरू न हुई प्रक्रिया बताकर दक्षिणी राज्यों की चिंताओं को कमतर करने की कोशिश की जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी हाल ही में कहा था कि दक्षिणी राज्यों की सीटें कम नहीं होंगी, लेकिन डीएमके और अन्य विपक्षी दल इसे साफ़ आश्वासन नहीं मानते। उनका तर्क है कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन हुआ तो दक्षिणी राज्यों को नुक़सान होना तय है, क्योंकि इन्होंने परिवार नियोजन को प्रभावी ढंग से लागू किया है।
आरएसएस नेता का यह कहना कि चर्चा अनावश्यक संदेह पैदा कर रही है, विपक्ष के लिए सवाल उठाता है कि क्या सरकार इस मुद्दे को टाल रही है या वास्तव में कोई ठोस योजना नहीं है। बीजेपी और आरएसएस इसे राजनीतिक नाटक करार दे रहे हैं, जबकि स्टालिन इसे संघवाद और लोकतंत्र की रक्षा की लड़ाई बता रहे हैं।
दक्षिण बनाम उत्तर की बहस
विपक्ष को मौका
डीएमके और अन्य क्षेत्रीय दल इस बयान को केंद्र और बीजेपी के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं, खासकर तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में।
आरएसएस की छवि
लोकतंत्र और एकता पर जोर देकर आरएसएस अपनी छवि को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह कितना प्रभावी होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि जनता इसे कितना स्वीकार करती है।
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