तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के नेतृत्व में दक्षिण भारत के राज्य लोकसभा सीटों के प्रस्तावित परिसीमन के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठा रहे हैं। स्टालिन ने इसे दक्षिणी राज्यों के हितों पर हमला बताते हुए कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर संयुक्त कार्रवाई की अपील की है। इस मुद्दे पर आंध्र प्रदेश की विपक्षी पार्टी वाईएसआरसीपी भी मुखर है और उसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर परिसीमन के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू इस मामले में केंद्र सरकार के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। यह विरोधाभास दक्षिण भारत की राजनीति में नई बहस को जन्म दे रहा है। आखिर चंद्रबाबू का यह रुख क्या संकेत देता है और इसका राजनीतिक असर क्या हो सकता है?
परिसीमन पर स्टालिन के नेतृत्व में दक्षिण मुखर तो नायडू का रुख अलग क्यों?
- देश
- |
- |
- 22 Mar, 2025
दक्षिणी राज्यों में परिसीमन को लेकर सियासी गर्मी बढ़ रही है। डीएमके प्रमुख एम.के. स्टालिन खुलकर विरोध कर रहे हैं, जबकि चंद्रबाबू नायडू का रुख अलग दिख रहा है। जानिए इसके पीछे की राजनीति।

परिसीमन का मुद्दा दक्षिणी राज्यों के लिए संवेदनशील इसलिए है क्योंकि यह उनकी संसदीय सीटों और राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव को कम करने की आशंका से जुड़ा है। अगली जनगणना के बाद अगर लोकसभा सीटों का बंटवारा जनसंख्या के आधार पर हुआ, तो उत्तर भारत के राज्यों ज्यादा सीटें मिलेंगी, जबकि दक्षिणी राज्य जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल को नुक़सान उठाना पड़ सकता है। स्टालिन का तर्क है कि दक्षिणी राज्यों ने परिवार नियोजन को प्रभावी ढंग से लागू किया, जिसके चलते उनकी जनसंख्या नियंत्रित रही। इसे लेकर वे इसे नियंत्रित जनसंख्या के लिए सजा करार दे रहे हैं।