ऐसे में जब कोरोना संक्रमण कम होकर हर रोज़ 11 हज़ार मामले आने लगे थे अब दक्षिण अफ़्रीका और ब्राज़ील में पाए गए नये क़िस्म के कोरोना के मामले देश में आने से नयी चिंताएँ पैदा हो गई हैं। इंग्लैंड के नये क़िस्म के कोरोना के 187 केस पाए जाने के बाद अब दक्षिण अफ्रीक़ी क़िस्म के कोरोना के चार मामले और ब्राज़ीलियन क़िस्म के कोरोना के एक मामले की पुष्टि भारत में हुई है। ऐसे तब है जब महाराष्ट्र और केरल में मामले फिर से तेज़ी से बढ़ने लगे हैं और देश में दूसरी लहर की आशंका भी जताई जाने लगी है। कोरोना वैक्सीन से राहत की उम्मीद है लेकिन नये क़िस्म के कोरोना पर यह कितनी कारगर होगी, और यदि नहीं होगी तो वैक्सीन को कारगर होने लायक बनाने में समय लग सकता है। यानी साफ़ है सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की पालना और मास्क पहनने में ढिलाई ख़तरे से खाली नहीं रहेगा।
ख़तरे की बात इसलिए कि नये क़िस्म के कोरोना पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाले और ज़्यादा संक्रामक हैं। यह वैश्विक स्तर पर पाए गए केसों के अध्ययन में सामने आ चुका है।
अभी तक तो रिपोर्टों में कहा गया है कि इंग्लैंड में मिले नए क़िस्म का वायरस ज़्यादा संक्रामक है और मृत्यु दर भी ज़्यादा है, लेकिन दक्षिण अफ्रीकी और ब्राज़ीलियन क़िस्म के कोरोना के मामलों में भी ऐसा ही हो सकता है।
कई रिपोर्टें तो ऐसी भी आ चुकी हैं कि दक्षिण अफ़्रीकी वायरस पर कुछ वैक्सीन उस तरह का असर भी नहीं कर रही हैं। हालाँकि, बड़े स्तर पर अभी शोध होना बाक़ी है। एक रिपोर्ट के अनुसार पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी इस पर शोध कर रहा है कि भारत में बनी वैक्सीन का असर ब्राज़ीलियन और दक्षिण अफ़्रीकी क़िस्म के कोरोना पर कैसा होता है।
अब भारत में स्थिति यह है कि ब्रिटेन वाले नये क़िस्म का कोरोना तो पहले ही भारत में आ चुका है और अब दक्षिण अफ़्रीका और ब्राज़ील के नये क़िस्म के कोरोना भी पाए गए हैं। चिंता की एक बात यह भी है कि महाराष्ट्र और केरल में संक्रमण के मामले बढ़ने लगे हैं।
जबकि दुनिया के कई देशों में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर आ चुकी है भारत में अभी तक दूसरी लहर नहीं आई है। हालाँकि कुछ राज्यों के बारे में ऐसा कहा गया कि वहाँ दूसरी लहर आई, लेकिन मोटे तौर पर पूरे देश में ऐसा नहीं हुआ। यानी एक डर तो बना हुआ है। जब कभी भी देश में मामले बढ़ने लगते हैं तो इसकी आशंका जताई जाने लगती है।
लेकिन जब हालात सुधरे तो स्थिति ऐसी आ गई कि कई देशों में स्कूल तक खोल दिए गए, मास्क उतारकर फेंक दिया गया और स्थिति सामान्य सी लगने लगी। और फिर संक्रमण की दूसरी लहर आई।
कई देशों में दोबारा लॉकडाउन लगाना पड़ा। पहले से भी ज़्यादा सख़्त। इंग्लैंड जैसे यूरोपीय देश इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। अमेरिका में तो जब दूसरी लहर आई तो हर रोज़ संक्रमण के मामले कई गुना ज़्यादा हो गए। पहली लहर में जहाँ हर रोज़ सबसे ज़्यादा संक्रमण के मामले क़रीब 75 हज़ार के आसपास थे तो दूसरी लहर में हर रोज़ संक्रमण के मामले 3 लाख से भी ज़्यादा आ गए।
संदेश साफ़ है। सावधानी हटी तो बड़े ख़तरे की आशंका बनी रहेगी। और दक्षिण अफ़्रीकी व ब्राज़ीलियन क़िस्म के कोरोना पाए जाने के बाद तो स्थिति और ख़राब ही होगी।
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